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करे घणो वैपार । चित उदार । दान घणो देवे ॥ इम तन धन पाइ । श्रेष्ट लाभ तस लेवे *॥ झे० ॥ सुण ॥ चउ मुनीवर जी तिहां आया । १० विहारे श्रम अति पाया। सुण
क्षुधा त्रषा शोषी काया । सु० मन बलिया नहीं घबराया ॥ मि०॥ पुरी मंडल मझार । फिरे दारो दार । इर्या सोधी जे ॥ तो मदन ॥ ३ ॥ देखी सेठ हुल्लसाय । दौड झट आय ।। | करे इम अर्जी । कृपा करो महाराज । तारो मुनीवरजी ॥ है शुद्ध मुज घर अहार । चार
प्रकार । लेवो जे पर जी ॥ तिम चउ मेहता हर्षाय दान के गर जी ॥ २०॥ सु० तब ६ मुनीराज पधारे । सु० धामे भोजन विविध प्रकारे । सु० धोवण उष्णोदक तैयारे ॥ सुलभ
थी मेवा मिठाइ भारे ॥ मि० ॥ और मुखवास । चार अहार खास । हुइ हुल्लास । धामे | सहू चीजे ॥ तो मदन ॥४॥ चित वित पातर शुद्ध । थाल भरलाइ ॥ सर्व तरहको आहर सेठ बहराइ ॥ चारों मेहता दे दान । चिंते मन म्यान । घणो ले जाइ ॥ तिण करण र वेहरावणमें करी कपटाइ ॥ झे ॥ सु० ते थोडो २ वेहराइ ॥ सु. मुख बातां यहुली बणाइ । सु० ते स्त्री गौत्र बन्धाइ ॥ सु० मुनीराज वेहर सिधाइ ॥ मि ॥ सुखे रहे हैं पंच प्रान । करे धर्म दान । एकाग्र लगीजे ॥ तो मदन ॥५॥ तिहां थी ची मणी चन्द । पुण्य अमंद । मदनजी थइया ॥ चउदान तणे प्रताप राज चार लहिया ॥ चार महता करी काल । उपज्या तत्काल । राज घर आइया ॥ कपट प्रभावे नारी वेर्दै ते थइया