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कुसुम थी दीनो छाय ॥ म ॥ कह्यो एकांतमें देव जो जी ॥ दूजे दिन तिहां जाय । दीनो कुवरीने ताय ॥ म ॥ हर्षी गृह्यो प्रसाद ज्यूं जी ॥ ८॥ खोली मुक्ताफल दीठ । लाग्या मनने मीठ ॥ म ॥ प्रेमे उर लागाबियो जी ॥ दी दीनार पच्चीस । कहे पुरुला जगीस || १ मोहर म ॥ इम नित्य नव २ लावियो जी ॥ ९॥ डोकरी घणी हर्षाय । महारे पासे आय ॥ म ॥ वीतक माडी सह कही जी ॥ नित्य नव २ बणाय । दुं डोसी हाथ पहोंचाय ॥ म ॥ मोती जो कुँवरी बुद्धी लही जी ॥ १० ॥ आइ पिताने पास । कर जोडी करे अरदास ॥ पिताजी सुणिये ॥ गडबड ग्राममें सांभली जी ॥ कोइ आयो रूप बणाय । तिणथी वेम मुज आय | ॥ पित ॥ मन सा म्हारी थांमली जी ॥ ११ ॥ जो होवे पुरी परिक्ष । दोन्यारी महारे समक्ष ॥ पित ॥ तो वर वानो दाखस्युं जी ॥ ज्यां सह्यां मुज काज दुःख । लाया हो मरण सन्मुख ॥पित ॥ तेहथी प्रीती राखस्यूं जी ॥ १२ ॥ नृप कहे तब घबराय । यहां लेबू दोन्या ने बुलाय ॥ बाइ ॥ तूं कीजे परीक्षा तेहनी जी ॥ इम कही दोन्या ने बुलाय । ते कपटी शीघ्र आय ॥ म ॥ दूजाको पतो को कहेनी जी ॥ १३ ॥ तब दाख्यो कुँवरी उपाय । गज मोती जे लाय ॥ पित ॥ पूरा सवासेर जे भरी जी ॥ नमूना के काम । एक मोती दियो ताम ॥ पित गह मेहला माय कुँवरी जी ॥ १४ ॥ नकलीने कहे भूप । लावो मोती इण रूप ॥ मदन ॥ सवाशेरतो कन्या वरो जी ॥ नहीं तो बैठो चुप जाय । साचाकी परीक्षा न थाय