Book Title: Madan Shreshthi Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Sukhlal Dagduram Vakhari
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म. श्रे. १३४
रह्या । मु०म० ॥ उत्सब माड्यो प्रोड ॥ पुण्य ॥ २१ ॥ शुभ लग्ने परणाविया ॥ सु० म०
खण्ड ७ दीवी जागीरी कढाय ॥ पुण्य ॥ इण विध हम सुखिया भया ॥ सु० म०॥ टलियो में दुःस्वको पहाड ।। पुण्य । २२॥ श्रीधर वीती कथा कही ॥ सु म० ।। सात खन्ड नव ढाल र ॥ पुण्य ॥ अमोल ऋषि कहे सांभलो ॥ सुखकारी हो श्रोताजी ॥ पुण्य फळ यह रसाल ॥ पुण्य ॥ २३ ॥ * ॥ दोहा ॥ जेष्ट बन्धव की मुण चरी । मदन घणा हर्षाय ॥ धन्य २/ भाइ तुमे । कीना जबर उपाय ॥ १ ॥ कोइक उत्तम वक्तकी। बात बदी सिद्ध होए ॥ ए तो
प्रत्यक्ष पारखो । मैं लीधो छ जोय ॥२॥ आं पा चारं बड परे । नदीने तट पेय ॥ जे जे ६ इच्छा वरणवी । ते पाया छा एय ॥ ३ ॥ हिवे कमी कुछना रही । मिलिया शुभ संयोग * कुलम्बे कह्या तिका ॥ वर्ष बारे ना भोग ॥ ४ ॥ ते काल पूरण हुयो । प्रगट्या पुण्य प्रताप || १३४
॥ हिवे चालो निज बोहर में । सह धन जन संग आप ॥५॥ ॥ ढाल १० मी ॥ हरीया | मन लागो ॥ यह ॥ मदन कुँवर सहूजन संगे । सोभावे उहू गणरे ॥ पुण्यना फल जोइलो संभार्या निज देशनेरे । तिहा चालण हुइ उमंगरे ॥ पुण्य ॥१॥ मदनजी कहे तात ने । अब चालीजे निज देशरे ॥ पुण्य ॥ कुलदेवी लह्या तिकेजी । वर्षे वित्य छे शेषरे ॥ पुण्य ।।। २॥ वसुपतजी कहे चालिये । हम तो सह तुम लाररे । पुण्य ॥ सपून पुत्र तुम सारीख हिवे हमने चिंता न लागाररे ॥ पुण्य ॥ ३ ॥ श्रीधर नृप पासे जइ । मांगे रजा तेवाररे ॥

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