Book Title: Madan Shreshthi Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Sukhlal Dagduram Vakhari

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Page 286
________________ || लाया मेहल मझारो । कनकावती मन हर्ष अपारो। राजपाटकी करे संभारो ॥ वर्त रह्या छे मंगलाचारो ॥ मि ॥ चारी सखी मिल अति हर्षाह । जो विभूती इन्द्र के साइ ॥ | मदन ॥५॥ फिर अजुद्या जावण सज हुया । राजपुत्रको राज दिया ॥ चारी प्रेमला | अंगज साथ ले । जोगीश्वरको नमन किया ॥ बेठ विमाणे गगन गति चले । भूमंडल ऋद्धि | देखारया । रंग बिनोद मार्ग लंघता । अजुद्यापुरी आय गिया ॥ झेला ॥ घर आगल विमाण उतरिया । जाणे भंवर रवी अवतरिया । नर बृन्द मिल्या आश्चर्य भरिया । वहा | | वहा मदनजी पुण्यका दरिया ॥मि ॥ चार नार संग मदन कुवरजी । मिल्या मावित्र भ्रात भोजाइ ।। मदन ॥ ६॥ देख मदनकी ऋद्धि इन्द्र सम । राज प्रजा आश्चर्य लाये ॥ दया नम्रता क्षमा सील थी । मदनजी अधिका सोभावे ॥ गुणयंत जे मनुष्य देखता। गुणीजन सघला हर्षावे । राजपुत्रियों नमी सासू पाग । तास खुशी न हीये मावे ॥ झेल | रूब कुटुंब संग सुख थी रहावे । दो गंधक सुर जों सुख विलखावे । गगन गामणी विद्यार प्रभावे । चार राजने सुखे निभावे | मि॥ अमोल ऋषि कहे ढाल द्वादश । पुण्य पदार्थ १ज्ञान | गृहो भाइ ।। मदन ॥ ७॥ 8 ॥ दोहा ॥ तिण अवसर पधारिया । संयति ऋषिराय ॥नाण करण चरण दिके । गुण छत्तीस सोभाय ॥ १॥ पंचसय साधू संगे । फिरता जनपद देश २ क्रीया द। अयुध्याके वागमें । उतर्या लइ आदेश ॥२॥ राजा पासे जाइने । दी यधाइ वनपाल ॥ ३ चरित्र 常常保常常带常常

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