Book Title: Madan Shreshthi Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Sukhlal Dagduram Vakhari

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Page 287
________________ | सुणी सहू आणंदिया । दीधो बहुलो माल ॥३॥ श्री भंडार थकी दीवी । हीरण अर्ध | खंड ७ 1 लक्ष तर ॥ हर्षीन घरे गया । सजीसजाइ फेर ॥ ४ ॥ सह परिवार परिवर्या । चाल्या वंदन | १३८ राय । हय गय रह पालखी । स्वजन परजन महाय ॥५॥ * ॥ ढाल १३ मी ॥ क्षिण - लाखे जीरे जाय ॥ यह ॥ रायभवन थी नीसरी जी । वन पालक ते वार ॥ वसुपति मेहले र आविया जी। मदन तणे दरबार ॥१॥ भाविकजन । धर्म सदा मुख दाय ॥ आ॥ १साडाबारह बधाइ दे पधारिया जी । मुज वागे मुनीराय ॥ पांच सय परिवार थी जी । सुणी सहर कोड रुपैये हर्षाय ॥ भविक ॥ २॥ धन दियो तिण ने घणो जी । ते आयो निज घेर ॥ सहू परिवार | ने सेठ नी तब । हुकम दियो इण पेर ॥ भविक ॥ ३ ॥ शीघ्र चलो वंदण भणी जी महापुण्ये मिल्यो जोग ॥ जे प्रमाद ए वक्ते करे जी । जाणो तस कर्म रोग ॥ भविक । १३८ ४॥ सेठ सेठाणी बेटा बहूजी । दासादिक परिवार ॥ सगा स्नेही सजायने जी लीना 52 सबही लार ॥ भवि ॥ ५॥ राजाजीने लारे थया जी। और सायबी लार ॥ मध्य बजारे । & होयनेजी। आया वाग मझार ॥ भवि ॥ ६ ॥ जो मुनीवर वाहण तज्या जी । पंच || अभीगम सांच ॥ सचित वस्त दूरी ठवीजी । मुनी गुण दर्शन राचा ॥ भवि ॥ अचित अजोगने परहरी जी । मुख उत्रासण किध ॥ सरल करी श्री जोगनेजी। धर्म में ध्याने चित दीध ।। भवि ॥ ८॥ नहीं नजीक नहीं वेगला जी । नमन यथाविध कीन ॥

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