Book Title: Madan Shreshthi Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Sukhlal Dagduram Vakhari

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Page 277
________________ खण्ड ७ १ देखके |चंग ॥ पुण्य ॥ हिवणां ते देखाड स्यो हो । सु० श्री ॥ तो सहू पूगे उमंग ॥ पुण्य ॥ ३ ॥ । मैं तब बटवो कहाडियो । सु० मद० ॥ कांइ मुट्ठी भरी तिणमाय ॥ पुण्य ॥ दीधी नृप का १३३ * हाथ में ॥ सु० मद०॥ कांह परक्षी गुण हर्षाय ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ वोलाइ कुँवरी भणी ॥ में सु०म०॥ अति आदर दे बैठाय ॥ पुण्य ॥ मुक्ताफळ सन्मुख ठव्या ॥ सु० म०॥ बाइ माले तुज मोती मिलाय ॥ पुण्य ॥५॥ कुवरी ये ताम मिलाइया ॥ सु० म०॥ एक सरीवा, 18| जोय ॥ पुण्य ॥ हर्षी घणी मन ने विषे ॥ सु०म०॥ कांह मुज मुख ने अवलोय ॥ पुण्य ९ ॥ ६॥ राय थी कहे कर जोडने ॥ सु० पिता जी ॥ कांड येइ सुज दुःख हरणार ॥ पुण्य ॥ २६ मन थकी मैं पहलां कर्या ॥ सु० पिता जी ॥ ए मुगुण भरतार || पुण्य ।। ७॥ इत्ती बात हुई जित्ते ॥ सु०॥ म० ॥ तत्क्षण निकली आय ॥ पुण्य ॥ चुपके उभो मुज आगले ॥ सु०म०॥ रूपे जन भरमाय ॥ पुण्य ॥ ८॥ मैं कह्यो कुण आगे आविया ॥ सु०॥ म०॥ ते कहे तूं छे कुण ।। पुण्य ॥ में कह्यो मोती मैं लावियो । सु० म०॥ ते कहे बडो निपुण : २६॥ पुण्य ॥ १ ॥ में दिया मोती रायने । सु० म० ॥ तूं झूटो मत बोल ॥ पुण्य ॥ हिवे भागी | जा इहां थकी ॥ सु०म० ॥ चाले नहीं तुज पोल ॥ पुण्य ॥ १० ॥ मैं बटवो पक्को कर्यो । सु०म०॥ तिण नहीं जाण्यो भेद ॥ पुण्य ॥ लोक तमाशो देखने ॥ सु० म०॥ अतिही | पाया खेद ॥ पुण्य ॥ ११ ॥ पारोरे मारो धूर्त ने ॥ सु० म०॥ इम राजा प्रजा केय ॥ पुण्य

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