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कीधो मनमें विचार | गुप्त करणो उपचार ॥ मदन ॥ कपटी जाणन पावे नहीं जी ॥ मिलूं रायसे जाय । लेवु कुँवरी बुलाय ॥ मदन | मोती बतावुं मैं सही जी ॥ २३ ॥ इम मन निश्चय की । थासी कार्य सिद्ध ॥ मदन ॥ ढाल आठमी ए भह जी ॥ अमोल करे प्रकाश | आगे शिक सम्मास || मदन | सुणियों श्रोता चित दहजी ॥ २४ ॥ ६ ॥ दोहा ॥ चाल्यो राजसभा विषे । आयो जब बजार | लारे लाग्या लोक मुज । करण लाग्या | बेजार ॥ १ ॥ ए आयो ठग ठगणने । रह जो सहू हूशियार ॥ मुज पूछे सिधावो क्या । लाया गजमुक्ता || २ || मैं कह्यो हां लायो अछू । चालो सभा मझार ॥ राय सन्मुख देखाडस्युं । शंकन आणो लगार ॥ ३ ॥ इम कही हूं आगे चल्यो । बहू चाल्या मुज लार ॥ मयंगल मोती पेखवा । करता हा हा कार ॥ ४ ॥ पुरमें पसरी बारता ॥ मिलिया लोक | अनेक || दौडी २ आगले । सहू रह्या मुज देख ॥ ५ ॥ * ॥ ढाल ९ मी ॥ झीणो मार्ग | जिनजी रो | यह ॥ आयो राज सभा विषे ॥ सुखकारीहो मदन जी ॥ कांई लुली २ मुजरो कीध | पुण्यं फल जोइ लीजो !! ऊभो रायजी सन्मुखे ॥ सुखकारी हो राजिंद जी ॥ कोह लोक जुड्या बहुविध || पुण्य ॥ १ ॥ राय पूछे तुम कोण छो । सुखकारी हो मदन जी ॥ तव मैं को कुँवरी लाणार || पुण्य ॥ धूर्त मुजने छेतयों ॥ सुख राज० ॥ कांह कीनो घो | क्ष्वार || पुण्य || २ || राय कहे तुम पास छे ॥ सुख० श्री घर जी ॥ कांई गज मुक्ताफळ