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म.श्रे.
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॥ ढाल ८ मी ॥ अषाड भूती अणगार ॥ यह ॥ पूछे मालण तेह | माजी सच्च मुज केह ॥ मदनज सुणिये ॥ ए उत्तम साडी कुण करी जी ।। ए मुज अतिही सुहाय । एसी नित्य दीजे लाय || मदनजी सुणिये । इनाम देस्यूं मन भरीजी ॥ १ ॥ बाइजी परदेशी कोय । सहू वियोगे दुःखी होए । बाइजी सुणिये ॥ आइ रह्यो मुज बागमें जी ॥ सुरूपे गुणवंत । कळा कौशल्य सोहंत ॥ वा ॥ लोमायो गुणना राग मेंजी ॥ २ ॥ तिन दी साडी बणाय । आग्रह थी को मुज तांय ॥ बा ॥ एकांत दीजे कुँवरी भणी जी ॥ अन्य न जाणे भेद । निवारे सहू वेद ॥ बा || हुकम होसी तो लास्यूं घणी जी ॥ ३ ॥ कुँवरी मन हर्षाय । जाण्या श्रीधर साचाय ॥ मदन | पत्र लिख दियो तिण तदा जी ॥ चिंता मत कीजो कांय । इहां रहजो सुख मां ॥ मदन ॥ उपाय करस्यूं हूं यदाजी ॥ ४ ॥ देजो नित्य समाचार । नहीं कीजो प्रेम विसार || मदन || आखिर सत्य तिरसे सही जी ॥ पंच मोहर संग पत्र | दियो मालणने तत्र ॥ मदन | सुखे राख मुख थी कही जी ॥ ५ ॥ मालण अतिहर्षाय । वेगी आइ बाग मांय || मदन | कागद दियो म्हारे करे जी ॥ कुँवरी खुशी हुइ बहोत । जोइ साडीरी जोत ॥ मदन | डोकरी मुज थी उच्चरे जी ॥ ६ ॥ प्रेम पत्र ते बांचा । बुजी दुख की आंच | म ॥ साच उपजावण कारणे जी ॥ पुष्पनो कंचू बणाय । नाम | गुंथ्यो ज्यों जणाय ॥ मदन | गज मोती गुंध्या वारणे जी ॥ ७ ॥ रखियो छावडी मांय ।
खंड ७
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