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टोला
इम सुणी * आणन्दियो जी । हिवे करूं उपाय ॥ फूल तणी रचना विषेजी । देवू कुवरीने समजाय हो ॥ म ॥ १८॥ माजी हूँ पण जाणूं छंजी । करवा पुष्ण आभरण ॥ कहो तो करूं साडी कंचुकीजी । दीजो कुँवरीनो जोइ मन हो ॥ म ॥ १९ ॥ इम सुण ते खुशी | | हुइ जी। दियो सूह डोरो हाथ ॥ रचना रचन सुरू करी जी । जे भुक्ती दोनो साथ हो ॥
म॥ २० ॥ कजली वन रेवा नदी जी । फील युथ वट झाड ॥ स्कन्ध बैठी कन्यका उम। विचित्र रंगदिया मांड हो । म ॥ २१ ॥ मृत्युक गज षणाइयो जी । मुक्त फल को ढंग ॥ १ हाथों का इत्यादि रचना रची। मैं तो धरीने अतिउमंग हो ॥ म ॥ २२ ।। करी घडी धरी छाबडी जी । दी डोसीने हाथ ॥ एकान्त कुँवरीने आपिये जी। जिम कोहय न जाणे बात हो । म ॥ २३ ।। देखी बुट्टी खुशी हुइ जी । मिलसी घणो इनाम ॥ सप्त खन्ड ढाल सप्तमी जी || कहे अमोल देखो काम हो ॥ ८ ॥ २४ ॥ ॥ दोहा ॥ हरषाणी मालण तदा । पुण्प करंडर PL कर लेय ॥ गइ ते कुँवरी मेहल में । एकांते रही तेय ॥१॥ पुण्पवती बुलायने । दीना
| गजरा हार ॥ फिर कहे हूं लावी अणूं। पुप्प सटिके मनोहार । २॥ प्रसारी देखाडतावरी २ साडी
| दृष्टि लगाय ॥ आश्चर्य पाइ अति घणा । ए कुण रचना रचाय ॥३॥ए तो बीती मज विषे । सघली दी आलेख ॥ हम दोनों जाणां अछां । बली कुण आयो देख ॥४॥ शंका पडी मनने विषे । सच्चा श्रीधर कौन ॥ जल्दी परिक्षा कीजिये । फिर परण वो जौन ॥५॥