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थी। आणि अधिक स्नेह || ते सुख जाणे केवली । के जाणे तस देह ॥ १ ॥ पूंछी वीतक वारता | तिण कही सह विस्तार ॥ धन्य २ श्रीधर भणी । कियो बडो उपकार ॥ २ ॥ ते उपकार फेडण तणो । अवसर दे भगवान ॥ ते दिन सफलो जाणरयुं । तब बोले राजन ॥ ३ || जे लासी बाइ भणी । तस परणस्युं तेह ॥ ए बचन छे माहरो | पार पाडस्युं जेह ||४|| आनन्दी कुँवरी सुणी । सुखे गुजारे काल || सुणियों मदनजी हिवे । जे हुवा म्हारा हाल ॥ ५ ॥ * ॥ ढाल ७ मी ॥ कुन्दनपुर आजोजी बनडा जी ॥ यह ॥ मेरी वीती सुणियों जी मदनजी । कीधा जे जे मैं उपाय || मेरी ॥ आं ॥ हूं आइ पुग्यो इहां जी । चलियो मध्य बजार || लोक घणा घेर्यो मने जी ॥ हाँसी करे अपार हो । मद ।। १ ।। ए आयो ते उग चली जी । श्रीधर रूप बनाय । हुर्रराट्यो देइ करीजी । दीनो मुज घबराय हो ॥ मद ॥ २ || चुगली करी कोइ राजमेजी । आया भट झट दौड || मारण लाग्या मुज भणी जी कहे मोडो इरी बोड हो ॥ मद ॥ ३ ॥ मैं कह्यो नहीं मारिये जी । इच्छा थी जाऊं बार ॥ नुकशान कुछ कीनो नहींजी । क्यों व्यर्थ करो मुज क्ष्वार हो ॥ मद || ४ || सहू जणा मिल कहाडियो हो । पुर गोपुरने बार || हुकम दियो पोरायतनेजी । मत आवा दो नगर मझार हो || मद ॥ ५ ॥ सहु गया निज स्थानकेजी । मैं पड्यो सोच के माय ॥ अहो प्रभु ये कैसी बनीजी । जग कोइय न म्हारो देखाय हो ॥ मद ॥ ६ ॥ आर्त अति
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१ चिन्ता