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खण्ड ७
दोनो तिहां घणा । दाधो तिण मुजने गुडायरे ॥ लेइ कुँवरी भागी गयो । पत्तो न तास र देखायरे ॥ जो ।। ११ ॥ पस्तावा अति मुज हुयो । हा हा कर्म करूररे ॥ मेहनत सहू में निष्फल हुइ । भोगी जे विप्ती पूररे ॥ जो ॥ १२ ॥ बिचमा ए दुष्ट कुण मिल्यो । मुज सम R रूप बणायरे ॥ भरमाइ लेगयो कुंवरी । मारी कूटी मुज तायर ॥ जो ॥ १३ ॥ आगल * ए करसी किस्यो । निज घर कुँवरी लेजायरे ॥ के भोलावे राजा भणी । महरा कुटंय |
भरमायरे । जो ॥ १४ ॥ इम विकल्प केइ उपजे । शीघ्र गती चाल्यो तामरे ॥ तिण पापी | आइ आगले । जमाइ पोतारी मामरे ।। जो ॥ १५ ॥ दी कुवरी जाइ रायने । कहे सह्यो %8 | कष्ट अपाररे ॥ अनेक युक्ती उपाय थी। काम पाड्यो मैं पाररे ॥ जो ॥ १६ ॥ सह पंछी
आप कुँवरी भणी । दीजिये मुज इनाम जी ॥ रखे विघ्न कोइ उपजे । चेतावू पहलां श्वामजी ॥ जो ॥ १७ ॥ मार्ग धुतारो मुज मिल्यो। सरीखो रूप वणाय जी॥ हराह
आयो हूं तेहने । रग्वेत आइ भरमाय जी ॥ जो ॥ १८ ॥ नृप कहे निश्चिंत रहो। मिलो | | जाइ परिवार जी ॥ अवसर उचित करस्युं सहू। पाडस्युं वयण हूं पाररे ॥ जो ॥ १९ ॥ इम सुण ते राजी हुयो । आइ बजारने मांयजी ॥ बहकाया सह लोकने । कुटुम्बने दिया भरमाय जी ॥ जो ।। २० ॥ धन्न २ सहू तस उच्चरे । रह्यो सुखे इहां तेहजी ॥ ढाल लट्टी अमोलक कही । देखो कपट कला एहजी ॥ जो ॥ २१ ॥ ॥ दोहा । कुँवरी मिली मावित्र