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खण्ड ६
७ ॥ हम घरे नारी अन्न निप जावे । पाणी पण भरलाय जी । मर्यादा न रहे न्यात पांतमें। चेन किणी परे पाय ॥ पग ॥ ८॥ रायजी सुणने आश्चर्य पाया। प्रत्यक्ष ए| गुणवंत जी । लालच नहीं मन राज नारीनो । पर उपकारे क्षपंत ॥ पग ॥९॥ कहे धरा धव बचन वृतने । तुमहीज दीसो श्रेष्टजी । तुम कहे सो सौ करसी बाइ । न रखसी पद जेष्ट ॥ पग ॥ १० ॥ मैं तो बचन दीधो छे पहली । जो मुज पुत्री लायरे | |॥ आधा राज संग्याते तेहने । ते देश्यू परणाय ॥ पग ॥११॥ ए तो बात होवे # नहीं मिथ्या । वली तुमने ते चायरे ॥ तुमसा सुगुणा मिलणा दुल्लभ । मानो हमारी | वाय ॥ पग ॥ १२ ॥ मदन कहे जो हुकम राजरो । सो मुज करणो भागरे ॥ इच्छा |जिम अनुसर स्यूं श्वामी । देखी आप प्रेम लाग ।। पग ॥ १३ ॥ इम सुणी राजा राणी | कुवरी । पाया हर्ष अपाररे ॥ औत्सव मंडाणा तिहां बहुविध । कीर्ती जिसो विवहार ॥ #पग ॥ १४ ॥ लेइ सीखने बहू आडंबरे । मदनजी आया दुकानरे ॥ चिंते बात गुण सुन्दरी | | जाणे तो । बिगडे सह मंडाण ॥ पग ॥ १५ ॥ करणो गुप्त रही ए कार्य । नहीं | जाणे जिम भेदरे ॥ जुदा मकानमें ठांठ जमायो । तिहां सहू पूरे उम्मेद ॥ पग ॥१६॥ खान पान सभा मंडप की। तिहां सजाइ सजायरे ॥ वस्त्र भूषण उगटणादी। जगकी रीत कराय ॥ पग ॥ १७ ॥ द्रब्य तिहां सर्व संपजे आइ । सज्जन होय अनेकरे ॥ न्याती
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