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म.श्रे.
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कहे अमोलख कपट किम प्रगदाय जो ॥ सु ॥ १८ ॥ ६ ॥ दोहा ॥ मदन आपो छिपावा | रवी पश्चिम छिपाय ॥ अन्धकारके व्यापता । दी रोशनी झलकाय ॥ १ ॥ दुल्लहा | वणिया मदनजी । सजिया सहू सिणगार ॥ रयण मुगट झग मग करे । मोड जरी जर तार ॥ २ ॥ की लंगी तूर्रा शिरे । कुंडल चौकडा कान ॥ हार कंठी बहुभूषणा मुखथी चाबे पान ॥ ३ ॥ जर भर जामो केसर्या ॥ उत्रासण उतमांग ॥ खड्ड कटारी शस्त्र सज | वाणिया ज्यों राजान ॥ ४ ॥ उत्तम मयंगले बेठिया । छत्र चमर दुलाय ॥ ओपता ते इन्द्र जिसा । रूप गुणे शोभाय ॥ ५ ॥ * ढाल ३ जी ॥ आवे वर लटकंतो ॥ चंदनरिंद महाराज || यह ॥ आवे वर गुणवंतो । मदनजी मदन समान रूप गुण सोहंतो ॥ आं ॥ वर राय मयंगला रूढ हुवाजी । सोहे इन्द्रसमान || वरोबरीरा सोभता जी । जानी या मिल सजी जान || आ || १ || केइ गज गाजी रथे । केइ सुख पाले छे स्वार ॥ केइ पायक सिणगारिया जी । जाणे अमर अवतार || आ || २ || वन्ही रोशनी तेजथी जी । दीसे ज्यों उग्यो भान || नाच रंग बहु विधना | बंदी जन गावे गान ॥ आं ॥३॥ सहश्रागम नरे परवर्या जी । चाल्या मध्य बजार || चालो रायवर जोइये । इम उलट घरे नरनार || आं ॥ ४ ॥ कांती गुण जो मदन का । सहू जन जनी कहे छे धन्य ॥ रूप सुन्दरी सी भाग्यवंतनी । जग नारी नहीं अन्य ॥ आ ॥ ५ ॥ इम अनुक्रमें चालता
खण्ड ६
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