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| कैसी । ज्यूं साधे आइजी ॥ वीत ॥ १५ ॥ रीतो तो नहीं जायो जावे । जे किया इत्ता उपाये जी ॥ इम हूं साथे फिरूं किहां लग ॥ जीव डर पावे जी ॥ बीत ॥ १६ ॥ पुरी मंडल रवी आयो जाणी । बड नीचे गय आइजी ॥ घांस पान की सेजे सुतो । कन्या भूठाइजी || बीत ॥ १७ ॥ राजपुत्री खेलणने लागी । कुंजरे निद्रा आइजी ॥ बात करणको अवसर जाणी । कंकरी बाहजी ॥ बति ॥ १८ ॥ कन्या चमकी जोवे चउदिश । कोइ न | द्रष्टी आत्रे जी ॥ हूं तो ऊभो झाडने रूपे । किम ओलखावे जी ॥ बीत ॥ १९ ॥ विचार करती पुष्पवतीने | आँखे आश्रू आया जी । ते देखी सुज मनडों हयों । भेद ज पाया जी || बीत ॥ २० ॥ ऊपर थी ए खुशी रहे छे । हाथी थी मन डरती जी ॥ पण मनडो तो | लाग्यो कुटम्ब में | नेणा भरती जी ॥ बीत ॥ २१ ॥ हिवे इणरो हूं दुःख गमावुं । इम मन मांही विचारी जी ॥ बृक्षरूप तजीने चडियो । बड पे ते वारीजी ॥ बीत ॥ २२ ॥ | शाखपत्रनी आडे छिपियो । पत्र लिखीने न्हाखी जी ॥ लिखित पत्र देखी कुँवरी हुइ ! हाकी बाकीजी ॥ बीत || २३ || आश्चर्य पाइ लियो उठाइ ! किहांथी उड ए आइजी || नर विना कुण चित्रे अक्षर | उपयोग लगाइजी ॥ बीत ॥ २४ ॥ बांचण लागी हुइ अति आतुर | ढाल चतुर्थी मांहीजी ॥ सप्त खन्डनी आगे बीतक । अमोल सुणाइजी ॥ वीतक ॥ २५ ॥ * ॥ दोहा ॥ ह्रूं अतिकष्ट सही करी । तुमने लेवण काम || आयो नृपनो मोकल्यो
१ दो पहर