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म.श्रे.
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४ ॥ इम चिंती ग्रही बड की डाली । मोटी छोटी तोडी जी || सर्व शरीर ने गांधी ली। पतीया चोंडी जी ॥ बीत ॥ ५ ॥ झामर झूमर होइने उतयों । धीरे २ चाल्यो जी ॥ | चकोर निजरे चउ दिश जोतो । गज आवे हाल्यो जी ॥ बीत ॥ ६ ॥ जो देखूं कोह दंती आतो । तो तिहांहीं स्थिर रेबुंजी | आगे गया थी आगे चालूं । उर | दिल लेवुं जी ॥ वीत ॥ ७ ॥ इण पर बहुली भूम उल्लंघतो। एकगिरी तले आयोजी ॥ आगे अंजन गिरीने सरीखो। फील देखायो जी ॥ पीत ॥ ८ ॥ सात अंग तस भूमी ए लागा । घूमंतो वन फिरतो जी ॥ अन्य गज पासे ते नहीं जावे । झाडीमें सिरतो जी ॥ बीत ॥ ९ ॥ तेहने स्कंन्ध वर निहाली । राय कुँवरीते वारो जी । विनोद भावे क्रीडा करता । दु:ख न लगारो जी || बीत ॥ १० ॥ मधुर सरस वन फल गज तोडी । सुंडी तेहने आपे जी || शीतल नीर निरझरणारो पावे । पृष्ठे स्थापे जी ॥ बीत ॥ ११ ॥ कदीक | सूडने लेइ झुलावे । कदीक दंते ठावे जी ॥ इम बहुविध क्रीडा करावे । हँसे हँसा जी ॥ बीत ॥ १२ ॥ मैं देखी घगो आश्चर्य पायो । ए जुड्यो केम सम्बन्धो जी ॥ गजकी प्रति घणी कुँवरी पर । ए मोहणी धन्दो जी ॥ बीत ॥ १३ ॥ राज कन्या तो इहां |छे सुखमें। किम आवे भुज लारे जी ॥ मुजने जाणी गजने चेता वे तो । ए मुज मारे जी ॥ वीत ॥ १४ ॥ जिण वस्तु काजे मैं आयो । ते तो मुजने पाहजी || हिवे आगे करूं युक्ती
खण्ड ७
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