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आस्युं देर न थावे जी ॥ म ॥ १२ ॥ हम बहुविध त्रिया समजाइ । तब कहे सुखे पधारो | जी ॥ भूल जो मत दासीने तांइ । पूरजो मनोरथ म्हारो जा ॥ म ॥ १३ ॥ राय जी मदन में
की सेवा काजे । चतुरंग सैन्य संग देवे जी ॥ और सहू बंदोवस्त कीनो । मार्ग सुखथी | | वेवे जी ॥ म ॥ १४ ॥ दुकान मोटा मुनीम ने भोलाइ । सह ऋद्धि संभलाइ जी ॥
भद्रसेणने राज काज निज । संभालण दीधाइ जी ॥ म ॥ १५ ॥ | पुरजन सुणियों मदन जी जावे । बहुजन मन बिलखावे ॥ जी ॥ दौडी २ मिलवा,
आवे । सहने सुख उपजावे जी ॥ म ॥ १६ ॥ आय हवेली कहे सुंदरीने । 2 कीजे वेग तैयारी जी । तुम मावित्रसे तुमने मिलावू । जोवो करामात महारी जी ॥ मम ॥ १७ ॥ ते पण झटपट तब सज होइ । घर दासीने भोलायो जी ॥ खावो उडावो रेवो
सुख में । आइने पूरस्युं उमावो जी ॥ म ॥ १८ ॥ गुणमुंदरी रथारूढ होइ । बहू दासीये |
परवरीया जी ॥ मदन मयंगलारूढ चमर दुलावे ॥ वरुदावली उच्चरीया जी ॥म ॥ १९॥ र शुभ मुहूर्त कियो प्रयाणो। पहोंचाइ फिर्या नर राणोजी ॥ और घणा सेठ सज्जन पुर ॐ जन । सीम लगण आया जाणो जी ॥ म ॥ २० ॥ मिलिया प्रेम घणेरो जणाइ । पाछा
शीघ्र दर्श दीजोजी | फिरिया पाछा देखता जावे। मदन कहे सुखे रहीजो जी ॥ म ॥ २१ ॥ आगल मार्ग सुखे अतिक्रमी । श्रीपुर नेडा आयाजी ॥ दोय जोजन के अंतरे राहया