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म.श्रे.
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वाये हो | म ॥ ७ ॥ राय मदन दोनों एकण गजवर । रूप गुणे सोभाये ॥ वंदी जन | वरुदावली बोले । छत्र धर चमर दुलाये हो ॥ म ॥ ८ ॥ मध्यपुरीमें होइ चाले । पूरजन मोतीये बधाये ॥ छत्र झरोके गोरे गौरडी । पेखण छत छवाये हो ॥ ९ ॥ अमोघ धारा दान देवता । जाचक दुःख गमाये || बहू ठाटथी इम परवरिया । राजभवन में आये हो ॥ म ॥ १० ॥ सुखासन बैठाइ सहने । चारों अहार जिमाये ॥ लेह तंबोल बैठा सभा में । |प्रेमकी वांतां बणाये ॥ म ॥ ११ ॥ मांड कही ब्रह्मचारीकी कहानी । मदन सुणी विस्माये । अहो ऐसा ज्ञानी धन्य विश्व में । मदन मुखे फरमाये हो ॥ म ॥ १२ ॥ राय कहे हम कन्या परणो । जे तन मनतुमें चाये । सत्पुरुष के बचनको पालो । ब्रह्म वयण निफल न जाय हो | म ॥ १३ ॥ मदन कहे आप राजेश्वर हो । क्या मुज देख मोवाये || मैं नहीं उपना राज के कुलमें। वाणिक जात कहाये हो ॥ म ॥ १४ ॥ हम घर तुम पुत्री किम सोभे । किम सुखे काल गमाये ॥ जोगी जोडी देखी देवो । ज्यो लोकिक सोभाये हो | म ॥ १५ ॥ सुणी राय आश्चर्य अति पाया । येही निर्लोभी पाये || नहीं | मिले जोतां इसा जगमें । ब्रह्मऋषि दरशाये हो | म ॥ १६ । राय कहे पठाण पुरपतिने । जिस गुणसे तुम भाये ॥ वैसेही हम मन लोभाया। नहीं जाये छिटकाये हो || म ॥ १७ ॥ मदन कहे आप आगृह अतीतो । ना नहीं मुज थी कहवाये ॥ इम सुणी
खण्ड ६
१ पुरुष स्त्री
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