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म.श्रे. ११२
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रंभाजी, कर जोडी नमी ॥ हूं आप दासी जी, भूलो किम गमी ॥ चाल ॥ गमी किम भूलो छो श्वामी । गरुढ चड उड आविया || मेहेन्द्रपुरके मेहल मांही । गंधर्व लग्न लगावि या || आप वियोगने कोप स्वजन । प्राण हरण खाइ पडी । तुम पुण्ये आयुवल जोगे । आज हुई छे धन्य घडी ॥ २ ॥ मदन कहे तब, बात साची कही ॥ महेन्द्रपुरे में, गुप्त परण्यो सही ॥ चाल ॥ सही परण्यो राजपुत्री । दूजी निशा तिहां गयो । सुणी डूबी खाइ में। जोतां पतो मैं न लह्यो । अथाग जले किम ऊगरे । ए आश्चर्य अति मन माहेरे ॥ किम हुवे तूं रंभा मंज्जरी । ओलख बचन तूं थायरे ॥ ३ ॥ कांइ प्रयोगे तूं, जाणी मुज बातडी ॥ आवी इहां तूं, मोह फंदे पडी ॥ चाल ॥ मोह फंद मुज न्हाख्या चावे | परस्त्री त्याग मुज भणी ॥ वृत भंगे नहीं म्हारो । किम वरूं हूं तुज भणी ॥ तिण थी जा तुज स्थानके । इण छल में हूं आस्यूं नहीं । इम वयण सुण कंथना । रंभा नेण श्रं वही ४ ॥ सत्य बचन नाथ, आप छो सतवंता ॥ हूं निश्चय नहीं, छली लेवूं अंता ॥ चाल ॥ लेखूं अंत हूं छली केहनो । इसी विसी नहीं जाणियें || वैम आप को दूर कहूं विती कहाणीये ॥ जिम उगरी इण शेहर आइ । पाइ प्यारो प्राणेश्वर ॥ धर्म तणी सील महिमां । आप आगे उच्चरूं ॥ ५ ॥ आप गयाथी, मैं निद्रावस भइ ॥ दिन कर चढियों, न शुद्ध तेहनी लही ॥ चाल ॥ लही शुद्धी धाय माता । लक्षण देखी माहेरा ||
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करवा ।
खंड ६
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