________________
म. श्रे.
| एक फिकर रह्यो आपनो । तेतले पुण्य जोग इहां। ब्रह्मचारी एक आविया । अनुभव | ज्ञान तणे प्रसादे । आप भणी बताविया ॥ १९ ॥ पयठाण पुरपत, जमाइ आवसो॥ इहां ।
खण्ड ६ | राजेश्वर, धूया परणा वसी ॥ चाल ॥ परणसी तेही पती थारा । नाम पण बतावियो । | निश्चय आयो मुज मन में । मन घणो हर्षावियो ॥ मार्ग मेह पर जोवती । आज नीठ | | दर्शन पाविया ॥ भूली सहू दुःख सरण आइ । सहू मंगल वरताविया ॥२०॥ ए कही है।
साहीबा, बीती मुज सहू ॥ झूट न समजोजी, सोगन हं लहूं ॥ चाल ॥ हूं लहूं सोगन | निश्चय काजे । पूछो सेठजी तातने ॥ जाण आपकी लाज राखो। संतोषो मुज गातने ॥ ढाल एक दश खन्ड छट्टे । अमोल ऋषि इण पर, कहे ॥ रंभा मज्जरी को चरित्र । सुणी मदन मन गैह गहे ॥ २१ ॥ ।। दोहा । मदन कहे अहो भामणी । साची थाणी बात ॥ ११४ सुखे रहो इण घर विषे । अर्को सुख निज गात ॥ १॥ चोरीथी परणी तुमें । भोग युक्त | नहीं मुज ॥ तुम पिता ने सन्मुखे । पुनः परण स्यूं तुज ॥ २ ॥ प्रेमला कहे ए| | किम बणे । शरम भर्यो ए काम ।। मदन कहे फिकर तजो। रीते पूरीस हुं हाम ॥३॥ गुण सुन्दरी निज कथन कही । संतोष्यो तस मन ॥ मिली रहे दोनों स्त्रिया । सुखथी|| काल गमन ॥ ४ ॥ धन्नासहा संतोष ने । पहोंचाया तस घेर ॥ आगल कार्य साधवा । उपजी मन में लेहर ॥ ५॥ ॥ ढाल १२ मी ॥ सोहन सिंह सण रेवती ॥ यह ॥ एकदा