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कल्पना । केहक हृदय उठंत ॥ तेतले हर्षित वदनथी । कोटवाल आवंत ॥ ३॥ प्रणमी
खण्ड ६ लुली भूपने । नृप कहे अकुलाय ॥ कहे पहला वीतक कथा । किम समाधान थाय ॥ ४॥
कर जोडी तलवर कहे । निश्चित रहिये चित ॥ नहीं कोई शत्रू आपना । मदन छे साचा, रमित ॥५॥8॥ ढाल १५ मी॥ जंबू कयो मान लेरे जाया ॥ यह ॥ गजेश्वर मांभ
श्वामी । नर पुण्य अचिंत्य होय ॥ ७॥ पुरुष भाग्प अचिंत छे श्वामी । जोवो प्रत्यक्ष में आप ॥ जे नर मारणने ग्रह्यो । तेहना प्रगट्या पुण्य अमाप ॥ रा॥१॥ केइ राज वशमें र हुवा । अने विद्याशक्ति अनेक ॥ दल प्रबल छ तेहने । कुण मागी सके तस टेक ॥ रा॥ २॥ पुण्यवंत क्रोड उपायसे श्वामी । मार्या कधी नहीं जाय ॥ पुण्यवंतने पुण्यवंत मिले ।
ते पण जोवो इण ठाय ॥रा ॥ ३ ॥ मैं मिल्यो मदन रायने । ते लाग्या महारे पाय ॥ ११८ ॐ ऋद्धि ठाकुराइ घणी । पण अभिमान नहीं देखाय ॥रा ॥ ४॥ उपकार तो अति मानीयो ।
जे दीधो जीवित दान ॥ बरोबरी हम बेठीया । और कियो घणो सन्मान ॥रा ॥५॥ आश्चर्य ए छे मोट को । 'बाई' डाली खाइ माय॥ ते तो मदन जी साथ छे । मने निजरेर दीनी बताय ॥रा ॥ ६॥ मैं बात पूंछी बाइने । तिण कीधा वीतक हाल ॥ ते तिणही | सभा विषे । विस्तारी कह्या सवाल ॥ रा ॥ ७॥ सुणी सहू सुख पाविया । करे धन्य २ मुख थी उचार ॥ हाह' कर्म गति कहेवी । और शील बडो सुखकार ॥रा ॥ ८॥ नृप