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लाइ बुलाइ मात तात ने । देखाया ते सहू खरा ॥ रोस भराणी राणी राणा । ठोकरी जगाइ मुज भणी ॥ नाम ठाम तव पूंछियो । दीवी धमकी अति घणी ॥ ६॥ नहीं कहता | गुज । मारण आविया ॥ मै कर जोडीने, तब दर्शाविया ॥ चाल ॥ दरसाविया नहीं |
मारियो । हूं पडी खाइ पोतो मरूं ॥ अजोग कर्म ए माहेरा । तेहथी आत्म हत्या करूं ॥ PF इम कही पडता मेहल पाछल । मंत्र नवकार मैं धाइयो ॥ पडी जलधी पुण्य जोगो ।
किंचित दुःख न पाइयो ॥ ७॥ अधर उडाइजी, सुर मुज लेगयो॥ धरी अटवीमें, जिहां में भी घर तस रह्यो ॥ चाल रह्यो तेहने घर मुज कहे । बेहन इहां सुख थी रहो
॥ सह भला थासी थायरा । न चिंता थी तन दहो ॥ मान वयण रही विपिन में । प्रफलादि भजण करी ॥ पण मनुष्य विन नहीं आसींगे। गेहली परे हं रही फिरी र
॥ ८॥ एक दिवस त्यां, सथवारो नरतणो ॥ आतो जोइ जी, मन हो घणो ॥ चाल ॥ घणो हो सार्थ पति तब । वनमें मुज ने जोहने ॥ पास आइ पूछे तूं कुण, साच कहे संख खोइने ॥ वनदेवीके विद्याधरी । किण इच्छा यहां फिर रही । इम सुणी धैर्य देइ तस । कल्पित बात महारी कही ॥९॥हूं अभागण, भूली बाटडी । इहां | भटकी रही, या दुःख की घडी ॥ चाल ॥ दुःख घडी थी छोडाइने । तुम मेलो कोइ | शुभ स्थानके ॥ जिम मिले मुज सज्जना । सुखी करो दया आवके ॥ इम सुणी ते