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६ घणी । भरायो दरबार ॥२॥ ब्रह्मचारी कहे सुखी रहो । हम जावां निज धाम ॥ # कहतांही गगने उड्या । सह रह्या आश्चर्य पाम ॥ ३॥ देव वैकुंट सिधा या ।।
इम करे सहू पुकार ॥ गुण उचरंत घरे गया । पसरी बात ते वार ॥ ४॥ उतर्या मदन में #जी वन विषे । मूल स्वरूप बणाय ॥ आया निज शैन्या विषे । जो सहूजन हर्षाय ॥५॥
8 ॥ ढाल १० मी ॥ कौन दिशासे आये पवन सुत ॥ यह ॥ देखी सब सुख पाये हो | | मदन नृप देखी० ॥ अ॥ शैन्य सजाइ चले मदनजी । जय नगारे घुराय ॥ एक मुक्काम | करी रस्ते में । श्रीपुरके ढिंग आये हो ॥ म ॥ १ ॥ पूर्वके बाग मांही उतरिया । रखवाले | नृप वैठाये ॥ते दौड आये दीनी वधाइ । पयठाण पुरके केवाये हो ॥ म ॥२॥ ते आये | बहू ठाट पारसे । सुणी भूप हर्षाये ॥ करी सजाइ शैन्या सघली । पुर रंग, | ढंग सोभाये हो ॥ म ॥ २ ॥ चाल्या बधावा नृपादी बहू । पुर जन अधिक
उमाये ॥ देखां कैसा राय जमाइ । जे ब्रह्मचारी बताये हो ॥ म ॥ ४ ॥ सहभागम | आमिल्या बागमें । भूपती मदन देखाये ॥ आनंद चउ नेत्र प्रफुलित । मदन आसण
तज धाये हो ॥ म ॥५॥ दोनों मिलिया नमीने प्रणम्या । हर्षथी हृदय भराये ॥ कहे | | नृप आप दर्शन चहातो । ते आज पुण्यसे देखाये हो ॥ म ॥६॥ पावण चारी कीजे हम घर । येहीज हम मन चहाये ॥ मदन कहे आप हुकम में हाजर । मधुर वचन मोह