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म.श्रे
खण्ड ६
१०४
* चाइजी ॥ इहां रहो करो इञ्छित कामा | कुण हुयो तुमे दुःख दाइ जी ॥ ५ ॥ ३ ॥
श्वामी आप कृपाकी छायां । दुःव नहीं मुजने लगारोजी ॥ स्वजन मिलण अति में |चित चहावे ॥ ते पण करे छे संभारोजी ॥ ॥ ३ ॥ स्वजन थी मिल पाछोऑस्यु ।। थोडाइ कालके मांइजी । अन्य कार्य मुज मार्गे बहुला । दो आज्ञा हित लाइजी ॥ म॥ ४ ॥ अतिहट जाणी वीनी आज्ञा । मेहलांमाही आया जी ॥ रूपसुंदरीसे कहे मधुरे ॥ हूं देश जावू काम सायाजी । म ॥५॥ नेणाश्रुत हो कहे प्रेमला । या कैसी पात |सुणाइजी ॥ किस्से देश आपरो नहीं जाणूं। या किसी मन आइ जी ॥ म ॥ ६ ॥ मदन कहे हैं छं प्रदेशी । वैपार काजे आयोजी ॥ माता पितादी सहू छे लारे । इह सह सुख पायो जी ॥ म ॥ ७॥ मिलवारी मुज उमंग घणेरी । जरूर एकवार जास्यं जी॥ तुम इहां सुख माहे रहिये । थोडाही दिन माहे आस्युंजी ॥ म ॥ ८॥ अति आग्रह जावणरो जाणी ॥ त्रिया कहे कर जोडीजी । मैं पण आपरे साथे आस्युं । दूर नहीं रहूं थोडीजी ॥ ९॥ बहु दिवसे मनोरथ फलिया । हिवे तज्या नहीं जावेजी ॥ किस्यो विश्वास विदेशी केरो। धैर्य मुज नही आवेजी । म ॥ १०॥ मदन कहे तुम शाणी होइ । इम किमबोलो वाणी जी । प्यारी प्रेमलाने कुण भूले । या बात बालकरी जाणी जी ॥म ॥ ११॥ काज घणा मुज मार्ग माही । संग न राखी जावे जी ॥ सर्व काम से शीघ्र निवृती