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खण्ड६
॥ हर्षका आंशू वहायजी ॥ हिवे ॥ ३ ॥ अहो वच्छ अब्धी किहांथी आया । किहां रह्या
इत्ता कालजी । थारे वियोगे हम दुःख पाया । वुरी मोहणी झालजी ॥ हिवे ॥४॥ गरुड ॐ तो तुज इहाइ रहियो । चोकस कीधी अपार जी ॥ पण तुज पत्तो किहां नहीं पायो । सं तय बैठा चुप धारजी ॥ हिवे ॥ ५॥ भले आया देख मन हुलसाया । तुज थी हमने |
सुखजी ॥ मदन कहे आज धन्य घडी मुज । आप दर्शने गया दुःख जी ॥ हिचे ॥ ६ ॥ राजकन्या मुज विदेश लेगा । तिहांनी रायपुत्री जायजी ॥ ते जोइ लायो अर्ध राज पायो । तेहीज दी परणाय जी ॥ हिवे ॥ ७॥ इत्यादी सह बात सुणाइ । ते आश्चर्य घणां पायजी ॥ यह नर तो सुरसम करामाती ॥ क्या क्या किया उपाय जी ॥ हिवे ॥८॥ उरतस चंपी खाती पयंपे । भाइ तू पुण्यवंत जी महारा घरमें किण तरह रहवे । तूं|
तो होसी महंत जी ॥ हिवे ॥९॥ मदन कहे नाक बाजे ऊंचो । तो भी कपालने नीचे जी 5. आप उपकार उरण नहीं होवू । जो चर्म देवू पग वीचेजी ॥ हिवे ॥१०॥ इम सुणी
दोनों हर्षाया । मदन कहे कर जोडजी । एक काम छे अति जरूरको । ते पूरो मुज कोड Eजी ॥ हिवे ॥ ११ ॥ पद्म कहे वेगी फरमावो । करूं मुज शक्ते काम जी ॥ तुज थी अधिक
अन्य कुण मुज ने ॥ कहो सो पुरूं हाम जी ॥ हिवे ।। १२ । मदन कहे एक स्थंभ वणावो ॥ अष्ट पेहल जस होयजी ।। माहे पोलो नर सुखे रेवे । वायू गमन शोभे मेहलजी॥ हिवे