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#राय गुणचंद मित्र वामन । कह गया तेही ए जानी ॥ ब्रह्मचारी मुज बात बता सी ।
खण्ड ६ ६ जणाइ जा रानी । ते पण मन हर्षानी ॥ म ॥ १४ ॥ दोनोंइ आया यथाविधी सज । ॐ यक्षालयने म्यानी ॥ तेज पुंज्य जोगी जो हर्षाया । ब्रह्मचारी पहचानी । तजी वाहण | सं तिहां आनी ॥ म ॥ १५॥ द्रढासनी द्रढ ध्यान लगायो । प्रभा नहीं जोवानी ॥ प्रणमी | भूपत पासे बैठा । कर जोडी नरमानी । जाणे हिवे करै मेहरबानी ॥ म ॥ १६ ॥ क्षणन्तर में
अवसर जो मदन । ध्यानने कियो ठिकानी ॥ राजा सन्मुख जोइ वोले । हम तुम मनकी ॐाजानी । तुम्हारी कन्या हरानी ॥ म ॥ १७ ॥ तास पत्तो पूंछनको आये पण मुजसे नहीं छानी ॥ इम सुण राजा आश्चर्य पाया। एतो बडा ब्रह्मज्ञानी । महारा मनकी पहचानी ||
म ॥ १८ ॥ कर जोडी कहे अन्तरयामी । मोटी करी मेहरवानी ॥ कृपा करी ए संशय मिटावो । देवो पत्तो लगानी ॥ किहां बाइ गुणखानी ॥ म ॥ १९॥ घ्राणे हाथ || लगाइ सोचे । बोले सीस हलानी ॥ कोइक देवता हरण करीछे । राखी छे सुखस्थानी । | जन्मांतर प्रेमानी ॥ म ॥ २० ॥ जो मिलवाकी इच्छा होवेतो। लेवू इहां बुलानी ।। मंत्रशक्ती प्रबल मुजपासे । इछित देवे अकृशानी ॥ सुणी राजा विस्मय मानी ॥ म॥ २१ ॥ इत्ती कृपा करोजो श्वामी । तो जाणे दी जिन्दगानी ॥ जन्म भर उपकार न भूलूं। करस्यूं सेव चरनानी ॥ बोले जोगी सुण म्हानी ॥ म ॥ २२ ॥ आज रात का मंत्र जपस्यूं।
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