________________
प्रीति धरी कोइ न बोलाय जो ॥ स ॥२॥ मंत्रवादिये हरण करी रायपुत्री का । तिणधी म.श्रे.
2 उपज्यो राजा प्रजाने त्रास जो ॥ बीडो फेर्यो पुत्री लावे जे माहेरी ॥ परगा वी दूं तेही
कुवरी तास जो ॥ सु॥ ३ ॥ सेठपुत्र ते मदन बीडो झेलियो । पर देशे फिर सहन # कर्यो घणो दुःख जो ॥ सोधी लायो रायपुत्री प्रयास थी । तिणथी पाया राजा परजा सुख जो॥४॥ वचनानुसारे परणावे राय पुत्री का । दोनो घरमें मडियो हर्ष उत्सहाय, जो ॥ पण तसु तातने चिंतामनमें उपजे । मुज तनुजमें बोलणरो नहीं लहाय जो ॥
सु॥५॥ रखे हांसी करावे तिहां हम गहनी । राय रोपाइ करे कोह अयोग जो ॥ #इम चिंतामें दिन घणा विताविया । आज मार्गमें जाता मुजने छोगजो ॥ सु॥६॥ हया
मीठे बचने मुज बोलाविया । मीठा २. भोजन मुजने कराय जो । एकांते लइ कहे सुण महारी बातने । कहं हं तुजने जो तं सोगन खाय जो ॥ सु ॥७॥ महारी कही हा बात किहां करजे मति । मैं पण सोगन खाया कया प्रमाण जो ॥ ते कहे तूं पण छे मुज पुत्रने सारीखो। रूप गुणमा तेहथी अधिक विनाण जो ॥ सु ॥८॥ मुज पुत्रने रायजी आपे पुत्रिका । आज लग्नको दिनछे एही भ्रात जो ॥ बोलणरो ढंग मदन में जरा
नहीं। तिणरे ठामे तूंही कुछ सोभात जो ॥ सु॥९॥ न्हाइ सज हो प्रहरी वस्त्र भूषण ॥ E दुल्लहा वणने परणो राजकुंवार जो ॥ तेलाइने सोंप तूं महारापुत्रने । मानूंगा हूं थारो