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| कुँवरीना कही बैठाय ॥ श्री॥१४॥ सुन्दरी निश्वास न्हाखनेजी । कहे तुज रुडो रूप ॥| पण गुणतो किंचित नहींरे । हूं सहू विरहनी धूप ॥ श्री ॥ १५ ॥ जोह | मूर्खाइ थायरीरे । खुशी करूं मुज मन ॥ अन्य किस्यो तू कामनारे । खुटावं म्हारा | दिन ॥ श्रो॥१६॥चाकर सह अचंभो धरे जी। क्यों हम करे सिरदार ।। सह गणथी|
पूर्ण भर्या जी । क्यों इण आगे होवे गवार ॥ श्रो॥ १७॥ जोडी युक्ती एहनी जी। IS होसी कारण कोय ॥ प्रगटे नहीं तस सामने जी । पूंछे न डर थी सोय ॥श्रो॥१८॥ ह गंभीरता सत्युग तणी जी । बाहिर नहीं करे बात ॥ मालक कही करे चाकरी जी ।
आश्चर्य मनमें पात ॥श्रो ॥ १९ ॥ कुँवरीने परचायनेजी। नीचे आया कुवार ॥ वस्त्र भूषण तन सजीजी । करे हाटे जा वैपार ॥ श्रो॥ २०॥ अवसरे राजसभा जह जी। करे योगो काम । राजा प्रजामें विस्तरी जी । मदन महिमा तमाम ॥ भो ॥ २१ ॥ इम सुख थी मदन रहे जी । अमोल सतरे ढाल ॥ पंचम खंड पूर्ण हुवोजी । मदन पुण्य में विशाल ॥ श्रोता ॥ २२ ॥ ॥ खन्ड सारांश हरीगीते छंद ॥ असुर समजा आनंदपुर | व वसा । कनकावतिका पति थया ॥ नीर ले मिल्या खेचरी । मंत्रियो जल ले गुफा में गया
॥ रूपवति भद्रसेण संग ले । जोगीने अशक्ती किया । पयठाण पुर आ रहे सुख में। | अमोल पंचम खन्ड भया ॥ ५॥॥.. . *