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१ सरोवर
प्रगट्यो । कुँवरी अश्व कुदाय ॥ आगे आइ मुख प्रेक्षती ॥ जोह मूर्ख धस्काय ॥४॥ वृक्ष शाख छेद्या थकां । जिम पडे धरणी आय ॥ तिम कुवरी पडी अश्वथी । वे शुद्ध | हुई मुरछाय ॥ ५॥ ढाल ५ मी ॥ आइरे पनोती जरा सिन्ध केरे ॥ ए० ॥ कुँवरी ने | पडी देखनेरे । मदनजी आश्चर्य पायरे ॥ मुजने जोह मुरजा गहरे ॥ चिंत्यो न मिल्यो |
इणने आयरे ॥१॥ जोवो करामात मदनकीरे ॥ ॥ करे अचिंत्य उपायरे ॥ मूर्ख |पणो नहीं पलटणोरे ॥ जिहां लग ए नहीं चहायरे जो ॥ २॥ दिशि विदिशी अवलोकन नेरे । जलागार तंतू भिजोयरे ॥ लेह आयो । कुँवरी कनेरे । मुख पर छांव्यो तोयरे । जो
२ पाणी ॥ ३ ॥ पवन जोग सावध हुइरे । बैठी करत विलापरे ॥ हाय देव किस्यो करे प्रगव्या में पुराकृत पापरे ॥ जो ॥ ४॥ किणने धार्यो कुण आवियो रे । एतो मूर्ख सिरदार रे ॥ मनमोहन किहां रह्यारे ॥ जे देता नित्य समाचार रे ॥ जो ॥ ५॥ हिवे आगल किम, थावसी रे ॥ जन्म कुवांरेइ जायरे ॥ मननी इच्छा मनमें रही रे । हूं गइ पूरी छलायर
रे ॥ जो ॥६॥ कुँवरीने रोती देखनेरे । मदन बैठो आई पास रे ॥ मूर्ख पणो भजाव | # वारे ॥ रोवे ठस्की भरी श्वांस रे ॥ जो ॥ ७ ॥ मूर्खने रोतो देखनेरे । कुवरीने
आइ रीस रे ॥ किसो दुःख तुज जगतमारे । जिमतूं पाडे चीसरे ॥ जो ॥ ८॥ ठसका # भरतोते कहेरे । मुज पण आयो रोजरे ॥ थांरा सुख थी मैं सुखी रे। तुम दुःख मुजने हो