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जनना हृदय ठरीया ॥ म ॥ १५ ॥ हर्षानन्दकी बटी बधाइ । दुशमणनो हृदय आगे जरीया ॥ म ॥ १६ ॥ मुक्ताफलना वैपारी बुलाया । पास बैठाया नृप प्रेम घणा घरीया ॥ म ॥ १७ ॥ कहो मोतीनी कमित भाइ | नीतीवंत तब हम उच्चरीया ॥ म ॥ १८ ॥ एकनी कीमत सवाक्रोड दीनार । शीघ्र दिरावो अब जावां हम घरीया ॥ म ॥ १९ ॥ राय कहे फूटा मोतीको कांइ लो । ते कहे फूटो गयो तेतो कचरीया ॥ म ॥ २० ॥ सत्यवंत संतोषी जोइ राय हर्ष्या । मदनने कहे देवावो जोग चरीया ॥ म ॥ २१ ॥ तब सचिव कहै सुणो विदेशी भाइ । अमूल्य मोतीना न जाय दाम भरीया ॥ म ॥ २२ ॥ थे निकल्या छो विदेशे कमावा । घरको धनतो न जावे धरीया ॥ २३ ॥ फूटा जे मोती हमी लिया फिर । तिणरी ही कीमत देस्या हम भरीया ॥ म ॥ २४ ॥ पांच क्रोड सोनैंया दिलाया । दाण माफ सह तेहना करिया ॥ म ॥ २५ ॥ मार्ग खावण खरच सहू दीना । अतिहर्ष गया ते निज घरीया ॥ म ॥ || ढाल दशमी अमोल ऋषि गाइ । इण गुणें मदनना यश पसरीया ॥ म ॥ २७ ॥ दोहा ॥ पुण्य पसाये मदनजी । पाया निर्मळ बुद्ध || राजा प्रजा मोहिया ॥ कीर्ती पसरी शुद्ध ॥ १ ॥ पुरपयठाणना नृपनो । पाया पद प्रधान || प्रीती बधी वणी राय की । देख मदन गुणवान || २ || क्षण अन्तर चावे नहीं । करे एकांत सहवास ॥ सम्वाद
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