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खण्ड
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छे बुद्धिवंता काम सिद्ध करसी । जोइए आगे सी थाइ हो ॥ उ ॥ १४ ॥ मुजरो करने कहे मदनजी । स्वामी दो आज्ञाइ हो ॥ थोडा दिन में कुँवरी सोदी । लाइ देस्यूं तुम तांइ. हो ॥ उत्त ॥ १५ ॥ नरपति भाखे तुम परदेशी । इहां आइने रह्याह हो ॥ एदुष्का| रज तुम सुख इच्छक । रजा किम देवाइ हो ॥ उत्त ॥ १६॥ माता पिता पण दूरा | तुमथी । साथे छे खटलाइ हो ॥ एकली छोडी किम जवाय । विचारो मन माइ हो ॥
उत्त ॥ १७ ॥ नमन करीने मदनजी बोले । सहुनी छ कृपाइ हो ॥ मुजने ऐसो काम | भोलायो । निश्चयथी ते थाइ हो ॥ उत्त ॥ १८ ॥ आप सहू के आशीर्वादे । | अने मुज पुन्य सहाह हो ॥ तिणथी दुःख जरा नही थासे । सब संकट विरलाइ हो । उत्त ॥ १९ ॥ इम सुणी राजाजी हर्षाइ । कहे धन्य २ तुम तांइ हो । महारी सभामें | तुमही मर्दछो । प्रत्यक्ष गुण दीठाइ हो ॥ उत्त ॥ २० ॥ शीघ्र जावो बाइ ले आवो । छे || परमेश्वर सहाइ हो ॥ धार्यो कार्य सिद्ध तुम थासी । मुज मन इम दरशाह हो ॥ उत्त ॥ २१ ॥ इम सुणी हर्षाया मदनजी । ढाल द्वादश मांडहो ॥ पुण्यवंतने सहू काम सुलभ ॥ ऋषि अमोलख गाई हो ॥ उत्तम ॥ २२ ॥ ॥ दोहा ॥ रजा लेइ नृपति तणी । करी लुली प्रणाम ॥ बहु परिवार परिवर्या । आया होटे ताम ॥१॥ भोलावे मुनीमने । राखजो पूरी संभाल ॥ जोगाजोग विचारने । लेजो देजो माल ॥२॥ हूं राजानी रजा
दुकानपर