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में कही । टलिया सहुसंताप हो ॥ मदन ॥ भ ॥ २५ ॥ ॥ दोहा ॥ दर्शन दीठा राजरा ।
खण्ड ३ हुयो घणो आणंद ॥ वीत्यो वृतांत हम तणो । कह्यो सर्व सम्बन्ध ॥ १॥ हिवे कृपा हम पर करी । एतो कीजे काज ॥ सरणे आया राजके । रखिये हमारी लाज ॥२॥ मदन | कहे मुन शक्तिथी । जो थासी उपकार ॥ तो पाछो हटस्यूं नहीं । करस्यूं काम विचार ॥ ३ ॥ संध्या हुई तिण अवसरे । भगिनी बान्धव दोय ॥ नरमाइ कहे मदनने । अब में। रहणो नहीं होय ॥ ४॥ असुर आवण वेला हूई । पधारो वनमाय ॥ रयणी तिहां सुख
थी रही ॥ प्राते आवस्यूं ह्यांय ॥५॥ मदन कहे जावो तुमे । हूं रहस्यूं इण ठाम ॥ व राते मिलस्यूं असुर थी ।.करस्यूं थाणों काम ॥ ६॥ प्राते तुम सहू देखजो । इम सुणी
हर्षाय ॥ प्रणामी पद मदन तणा ॥ दो, ते तब जाय ॥ ७ ॥ ॥ ढाल १३ मी ॥ कपूर होवे अतिउजलो रे ॥ यह ॥ उभयगया तदनंतरे जी । मदन चिंते मन माय ॥ असुर आवण अजू वार छेजी। किस्यो करूं इण ठाय ॥ चतर नर । साहसवंत मदन ॥
आं ॥ १ ॥ जिण कामें इहां मैं आवियो जी । ते करूं पहली जाय ॥ सत वटवृक्ष | मध्य कूप क्यां जी । जोवू पहली ते ठाय ॥ च ॥ २ ॥ जल लाइ संग्रही धरूंजी। फिकर टले एक एय । महिनानो अवकाशछेजी । करस्यूं काम सब जेह ॥ च ॥ ३ ॥ इम चिंतवी तिहांथी चल्याजी । आया ग्रामनेवार । किन्नरी कला अनुसारथी जी ।