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म.श्रे.
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॥ श्री ॥ २० ॥ दोहा ॥ मदनजी तब आपियो । जे लाया संग नीर ॥ रतीसुंदरी हर्षायो कहे । शावास नरवीर ॥ १ ॥ यथाविधी मंत्री दियो । कहे राखीजो संभाल ॥ इणथी तुम इच्छित थसी । उतरे योगी व्याल ॥ २ ॥ तुम अंग पहले पाखालके । खोलजो गुफाना पट || बाइ बाहिर काहाउने । इणथी न्हबावजो झट ॥ ३ ॥ फिर न्हबावजो शुक भणी । ते थासी नर रूप || बैठ विमाणे जाव जो ॥ न दे को दुःख धूप ॥ ४ ॥ जोगी आइ मस्ती करे । तो छांट जो ए जल || निर्बल हो पडसी धरा । भूलसी सह हल फल || ५ || ४ || ढाल १३ मी ॥ जंबूद्वीप मरूस्थल देशे | यह ॥ आनन्द धरी मदनजी उडिया | आइ बैठा विमाणो ॥ नाटक जोवा तिहां रह्या ऊभा । जिहां लग प्रगटे भाणो ॥ मदनजी सुणिये । हम दुःख दोहग धुनिये ॥ म ॥ आं ॥ १ ॥ विद्याबले विमाण चलायो । जोगीकी गुफापे आया । चिंतित स्थान देखीने हर्ष्या । जोगी तिहां नहीं पाया ॥ म ॥ २ ॥ तज विमाण ने नीचे उतर्या । पोपट मदन जी जोइ ॥ नाच्यो कूद्यो लुलीने मियों । हर्ष उमावे होइ ॥ म ॥ ३ ॥ किम साहेब आपछो आनंदमां । कार्य सिद्धकर आया ॥ धन्य भाग हम पुन्य संजोगे । आपका दर्शन पाया ॥ म ॥ ४ ॥ कहे भाइ धर्म पसाये । सह काम रूडा थासी ॥ धैर्य धारो वचन संभालो | हिवणा सब दु:ख जासी ॥ म ॥ ५ ॥ तिण जल थी मदन जी न्हाइ । शिलापे
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खण्ड ५