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खण्ड ५
में अति पस्तायो । व्यर्था में इण लारे आयो ॥ कांह ॥ २० ॥ पश्चातापे अब होवे कांइ । K किया कर्म उदय जब आइ । कांह ॥ २१ ॥ उसकतो २ गयो घर चाली । सहू करामात * खोह कपाली ॥ कां ॥ २२ ॥ इसो जाणी कोइ दगोन करिये । ढाल चउदे अमोल सीख वरिये ॥ कांइ ॥ २३ ॥ॐ ॥ दोहा ॥ जोगी पडया तदनंतरे । तीनूं हुवा खुशाल ॥ करामात जो मदन की । जाण्या पुण्य विशाल ॥१॥ पूछे मदन कुँवरी थकी । अन्ध
गुफाने माय ॥ मुज नाम किम सांभर्यो । कुवरी कहे शरमाय ॥ २॥ राय आंगण में । में खेलती । जोवती तातने पास ॥ रूपे मुज मन मोहियो । सुणी गुण प्रकाश ॥ ३ ॥ निश्चय
मन थी तब कियो । बीजा तात समान ॥ प्रतिज्ञा ए माहेरी । पूरसी श्री भगवान ॥४॥ जे जन होवे आपणा । दुःखमें मुख ते आय ॥ सहायतापण तेही करे । इम कही मुल की रहाय ॥ ५॥ ॐ ढाल १५ मी ॥ सुमत का साहेबारे ॥ यह ॥ सुगड नर सांभलोरे । मदन का पुण्य चडता दिनकार ॥ ॥ भद्रसेण पूछे तदा । अब कहो आप विरतंत ॥ | करामात किम पामिया । दो मास किहां वीरतंत ॥ सु ॥ १ ॥ मदन कहे हिवे |
सांभलोरे कहूं म्हारा सहू हाल ॥ पुर पयठाय पीडो ग्रयो । लेवा कुवरी निकल्यो | तत्काल ॥ सु॥२॥ भटक तो आयो तुम कने जी । तुमे वताइ युक्त ॥ ते करवा आगल चल्यो जी । होवा वयण थी मुक्त ॥ सु ॥ ३॥ कामदेवने मंदिरे जी । किन्नरियां मिली