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म.श्रे.
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| जाववा । हुवा शीघ्र तैयार ॥ ५ ॥ * ॥ ढाल १२ ॥ मी ॥ लालना हो राम रूप कीधो भलो | यह ॥ श्रोता हो । पुण्य थकी इच्छित फले । अभिनव वस्तु पाय । श्रता हो । | पुण्यशाली मदनेशजी । कार्य करवा उमाय ॥ श्री ॥ पुण्य ॥ १ ॥ कनकसुन्दरी कर जोडने । पूछे प्रकाशो श्वामी ॥ श्री ॥ उतावल दीसे घणी । किहां जावा को काम ॥ श्री ॥ पुण्य ॥ २ ॥ यहां थी जोजन द्वादशे । जावो पूनम शाम ॥ श्री ॥ तब प्रेमे भणे प्रेमला । एतो क्षणनो काम || श्री || पुण्य ॥ ३ ॥ गगन गामनी साधिये । विद्या | जे मुज पास ॥ श्री ॥ इच्छित स्थान पधारिये । नही देखीये त्रास ॥ श्री ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ विद्या गृही साधन करी । तत्क्षण हुइ ते सिद्ध ॥ श्री ॥ पुण्य पसायी जीव ने । दुष्कर नहीं कोइ रिद्ध ॥ श्रो ॥ पुण्य ॥ ५ ॥ पूनमको दिन आवियो । प्रीतम भक्ती काम ॥ श्री ॥ विद्या प्रभावे निपाइयो । कनकावतीये विमान ॥ श्रो ॥ पुण्य ॥ ६ ॥ पंच घुमंट रत्नातणा ॥ सुवर्ण स्थंभ सुचंग ॥ श्री ॥ पूतली या सजी नाचती । चित्र विचित्र बहु रंग ॥ श्री ॥ पुण्य ॥ ७ ॥ शयनासन स्थान जुजुवेा । भोजन जलका कीध ॥ श्री ॥ सामग्री सजी सह । वक्ते साधे सहू विध ॥ श्रो ॥ पुण्य ॥ ८ ॥ अर्पण कियो पती भणी । विराज्यो इणमांय ॥ श्री ॥ नाथ मुशाफरी कीजिये । जिम दुःख अंगन पाय ॥ श्री ॥ पुण्य ॥ ९ ॥ विराज्या मदन जी तेह में । दे नारीने विश्वास ॥
खंड ५
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२ अलगा २