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खण्ड ४
३ ॥ अंगज पण साथे हुयो । जोगी मदन कहे एम। हमतो रमते राम हैं । तूं संग लागा केम ॥ ४ ॥ ते कहे हूं शिष्य आपको । रहस्यूं आज्ञा मांय ॥ मदन कहे साथे में लियो । करसी सज्जन सहाय ॥ ५॥ ॥ ढाल ५ मी ॥ मोटी या जग माह मोहणी ॥ यह ।। पुण्य ॥ संजोगे सजन मिले । अणचित्यो हो आणंद प्रगटाय || गुणवंत थी गुणवंत | मिल्या । चमत्कारीहो केइ करे उपाय ॥ पुण्य ॥१॥ जोगी कहे मदन भणी । आपाlal
आया हो जिण कारज काज । ते तो अजू को नहीं । थे फसाया हो इण झगडा माज ॥ पुण्य ॥ २॥ नरमाइ मदन भणे । गुरु रायजी हो इम फरमावो केम । जीवित दियो गुणी नर भणी । भयो चेलोहो ए अपंसी क्षेम ॥ पुण्य ॥ ३ ॥ ए उपकार मोटो र देवेगा सुख हुयो । हिवे करस्यां हो सहू आपणो काम || चलिये लहिये बजार थी। जेलागे हो ते | सहू सराजाम ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ मध्य बजारे आविया । बहु लोकजहो उठ करे प्रणाम ॥ लापरवाही निलोभिया । बुद्धवंता हो विरलाजग श्वाम ॥ पुण्य ॥५॥ सामग्री जाचे तिहां । ते लोकज हो दौडी २ लाय ॥ दुगुणी आपे कहेण थी । बरा जोरी हो तस पल्ले | बन्धाये ॥ पुण्य ॥ ६ ॥ दाम दे तेतो लेवे नहीं । कहे आपको हो सहू छे प्रताप ॥ | लेवां घणा नरने ठगी । और चाहिये हो सो सुखे लेवो आप | पुण्य ॥७॥ देखी भक्ती उदारता । जोगीश्वर हो अतिही हर्षाय ॥ चिंतवे मनरे मायने । ए प्रताप हो