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म. श्रे.
खण्ड ५
८५
१ समुद्र २ देवी
३ देवीको
सहारी ॥ नहीं ॥ ३२॥ ॥ दोहा ।। दोनू कुँवर जावण लग्या। निर्जरी कहे ते वार ॥ किहां पधारो भाइ जी । ते कहे हम परिवार ॥१॥ उभा तटनीपति ढिगे । जोता होसी में वाट ॥ देर घणी हमने हुई । टाला तस औचाट ॥२॥ सुरी कहे ते तो गया । देखी २९ महारो चरित्र ॥ जे करियो ते सणावियो । सणी हया ते विचित्र ॥३॥ त्रिदेशी कहे |चिंता तजो । मेलूं हूं झाज मांय ॥ तत्क्षण वाहण में ठव्या । लोक देख विस्माय ॥४॥ | वीतक कही विबुधी चरी । टलियो सहु संदेह ॥ धर्मात्मा लखी कुँवरने । धन्य २ सहू केह *॥५॥ ॥ ढाल ८ मी ॥ तारा प्रत्यक्ष मोहणी ॥ यह ॥ लालच बुरी बलाय छे । लालच
से दुःख पाय हो । मदन ।। दोनों कुँवर तिहां थकी । तत्क्षण फिर घर आयहो ॥ म ॥ लाल ॥१॥ वेगा आया जाण ने । सहू सज्जन विलखाय हो । म ॥ वाहण भागाके दुःख हुवो । खाली सह किम आया हो ॥ मदन ॥ लाल ॥ २॥ सामा आय पूंछियो । सहू
कह्यो देवीचरित्र हो ॥ मदन ॥ सुण हर्षाया साजना । जाणी कुंवरने पवित्र हो ॥ मदन ॥ PR लाल ॥ ३ ॥ निजस्थान सह आविया । देवी दियो ते हार हो । मदन ॥ भेट दियो भूपत
भणी । कही बात विस्तारहो । म ॥ ला ॥ ४॥ राजा सभा वाहवा करे ॥ तुम हम पुरे सिणगार हो। म ॥ लक्षीपोशाक वक्षावियो। नगदी द्रव्य अपारहो ॥म ॥ ला ॥५॥ में लेइते घर आविया । पोशाक धरी घरमांय हो ॥ म ॥ द्रव्य दियो सहू वॉरने । जे साये
हो ॥ म ॥ ला ॥ ५॥