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खण्ड
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| जोयके । इम ॥ ३ ॥ मरण कोइ इच्छे नहीं । तुम कुटम्ब के मोहमें आयके ॥ इम ॥
लक्ष दीनारने कारणे । हार पोयो तीव्रबुद्धि उपाय के ॥ इ ॥ ४ ॥ तिमहीं लोभ में ८७ | राजा कियो । नहीं जाणे हम विपता आय तो ॥ ॥ काम क्रोध मद लोभ मोह । कटरा
शत्रु कह्या जिनराय तो ॥ इम ॥ ५ ॥ इनके वश पड्या जीवडा । अनेक विप्र रह्या जग भोगके ॥ ॥ नहीं छूटे ते दुःख थी। जिहां लग न मिटे जालम रोगतो ॥ इ॥ ॥६॥ वैरानुं बन्धन जगत में । महाभयंकर कह्यो जगनाथ तो॥ ॥ फजीती भवोभव
ए करे । सार तेने कछु हाथ न आथ तो ॥ इ ॥७ ॥ कुण पुत्र कुण तात छे । १धन
नाता सहु हुवा वार अनंत तो ॥ ॥ एक भणी संतोष वा । घणा सज्जन को आणे छ । अंत तो। इ ॥ ८॥ ए अज्ञानता अवलाने । ज्ञानीजन हांसो मन लाय तो ॥॥ किम छूटसी येह प्राणिया । कर्म फास में रह्या फसाय तो ॥ ॥९॥ एक अन्याय राजा तणो । तुम संताप्यो खवलो ग्राम के ॥ इ ॥ जुदो २ बदलो लहे । तो किस्यो होवे तुम परिणाम के ॥ इ ॥१०॥ द्रव्य घात तुमना सही। तो किम सहसो दुःख अघात के ॥ ॥ दीर्घ द्रष्टी ये विचारिये । नहीं करिये निज प्राणको पात तो ॥ इ ॥ ॥ ११ ॥ समद्रष्टा धारण करी । काटी सहुए विरोधकी जड तो ॥इ ॥ जिम आगे दुःख न लहो । आत्महितने लेवो पकडतो ॥ इ ॥ १२ ॥ धग २ तो लोह भणी । शीतल