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RAI लोहो न्हाखे छे काट तो ॥ ॥ शत्रु ता उभय लोककी । क्षमा तिमही देवे दाटतो ॥ F इम ॥ १३ ॥ गुणपर गुण तो घणा करे । बलिहारी करे अवगुणे गुण तो ॥ इम ॥ पूजे | पिशुन पांव संतना । ज्ञानी गुणी तप्त कहे निपुण तो ॥ इम ॥ १४ ॥ निज
२ सुणकर हितेच्छु हो मानिये। कहण हमारी जो लगे सुखकार तो ॥ इम ॥ नरम्यो श्रवणी* देवता । कहवा लाग्यो कर नमस्कार तो ॥ इम ॥ १५॥ सत्य उपदेश योगीशजी ।
रूचियो महारा मन मझार तो ॥इम ॥ वैर तजूं अंतर थकी । जगमें को नहीं मुज || भी गुनेगार तो ॥ इम ॥ १६ ॥ सुग्वे सहु रहिये इहां । राज कियो ए आपकी भेट तो ॥
इम ॥ अन्यने राज ए नहीं मिले । रखे ते पुनः करे अखेट तो ॥ इम ॥ १७ ॥ जोगी कहे || में त्यागी हमें । राज्य दौलत त्रिया नहीं चाय तो ॥ इम ॥ हम तो रमते राम हैं। नहीं
फसे किसी फंदके मांय तो ॥ इम ॥ १८ ॥ देणासो देवो मदन को। यह है सब | निर्वाहने जोगतो ॥ इम ।। देव कहे दियो मदनने । मुखसे कीजिये जेह मन्योग तो॥
इम ॥ १९ ॥ तेतले रवी प्रगटियो । देव बहुरूप वैक्रय करतो ॥ इम ॥ राज देवण उत्सव में | रचे । जाणे ए नयर सहु गयो भरतो ॥ इम ॥ २० ॥ आनंदपुरमें आनंद भयो । | पंचम खन्डकी नवमी ढाल तो ॥ इम ।। अब आगम पुरजन तणो । कहे अमोल सुणो || श्रोता रसाल तो ॥ इम ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ वन वासे नृप सुत मुखे । सुणि यों सारा