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ASIYA
Mail पुष्प छडी तन वागी जी । देख देवी रही अचंभारी ॥ नहीं ॥ १९ ॥ जाण्यो इणरे धर्म छ ।
सहाइ । गई देवीकी सह गुमराह जी ॥ अतिगई मन में शरमारी ॥ नहीं ॥ २०॥ मूलगोरूप बणाइ कहे करजोडी नरमांह जी । करो मुज अपराध क्षमारी ॥ नहीं ॥ २१॥ तुम सरीखा मुज नहीं मिलिया । तुम दर्शन मुज पाप टलिया । जी हूं तो चेली हुई छं तुमारी १ कहे
नहीं ॥ २२ ॥ पूछे कुँवर तूं कुण छे बाइ । देव हुइ किम करे नरमाइ जी । दाखो नी ! हकीगत थारी ॥ नहीं ॥ २३ ॥ सुरी कहे पाप उदे भाइ । या नीच गतिमें पाइ जी । नहीं | छीवे कोइ देवतारी ॥ नहीं ॥ २४ ॥ जे नर भूली इहां आवे । ते मुजने सुख उपजावे जी। देखी वैभव जावे लौभारी ॥ नहीं ॥ २५॥ पण धन्य २ तुम तांइ । राखी इण समे | द्रढताइ जी । हिवे मांगो जे तुम इच्छारी ॥ नहीं ॥ २६ ॥ कुँवर कहे हम आगे । करो नरIA मारन का त्यागे जी। तो गया हम सह भरपारी ॥ नहीं॥ २७॥ देवी कहे त्याग नहीं होवे । हिवे जन्म कुण विगोवे जी । सत्पुरुष मिल्या तुम सारी ॥ नहीं ॥ २८॥ एक भेट म्हारी स्वीकारो । दियो रत्ननो बहुमूल्य हारो जी ॥ ए राखो करी कृपारी ॥ नहीं ॥ २९ ॥ अवसर जोइ ते राख्यो । तब मुरी तस गुण दाख्यो जी । ए टूटे जो किण वारी ॥ नहीं॥ ३०॥ जिण पासे ए सन्धासी । ते पट मासे मरजासी जी ॥ ए राख जो मन में धारी ॥ नहीं ॥ ३१॥ ए ढाल सातमी गाइ । पंचम खन्ड सुख दायी जी ॥ अमूल्य शील छे
BYPASANNY