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मदनको कहवाय ॥ पुण्य ॥ ८॥चायती वस्तु लेयने । तीन आया हो तब ग्राम ने बार M॥ बैठा अम्बिका देवले । आपसमें हो करता बात विचार | पुण्य ॥ ९॥ रंग | रूप सेठाण जो । अंगज हो करे मन में विचार ।। मुज बेन्योइ सारखा । अन्य कोहछे हो | यह तस आकार ॥ पुण्य ॥ १० ॥ अंगज पूछे मदन स्यूं । तरुण वयमें हो किम लीनो जोग ॥ किसा गामका वासीथा । इहां आया हो किस हे संजोग ॥ पुण्य ॥ ११ ॥ उभय | पक्ष संसार का । प्रकाशो हो कृपा कर नाम ॥ संशय मुज मन उपज । ते फिटसी हो | पासूं आराम ॥ पुण्य ॥ १२ ॥ मदन कहे शावास छ । थोडे अंतर होगया मुज भूल || हूवसुदत्तनो मदनछु । अझुध्याय हो उपनो मुजे कूल ॥ पुण्य ॥ १३ ॥ अंगज सुण हयों
। बेन्योइ जी हो मिल्या मोटे भाग । दर्शन थी दुःख मेंटिया । आप कीधो | हो उपकार अथाग ॥ पुण्य ॥ १४ ॥ किहां अछे कुटम्ब सहू । आप निकलया हो देशाटन काज । घणा बर्ष वीती गया । पाछो पत्तो हो लाग्यो छे आज । पुण्य ॥ १५॥ मदन | कहे सहू वट पूरे । कर्म जोगे हो हूं आयो इण ठाम ॥ ठीक हुयो तुम मुज मिल्या । | हिवे करस्या हो आपण सहू काम ॥ पुण्य ॥ १६ ॥ जोगी जो आश्चर्य भयो । साला बेन्योइनो मिल्यो जोडो आय ॥ गंभीराइ धन्य मदनकी । इत्तीवारमें हो जरा भेद न जणाय ॥ पुण्य ॥ १७ ॥ अंगजने जोगी कहे । मदन ए हो कियो किस्यो उपकार |