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म. श्रे.
॥ मुजने भेज्यो सन्मुखे । आप तणे महाराज ॥ ३ ॥ चमक्यो यक्ष यों सांभली । लघूनो में र साहस एह ॥ मोटा गुरुनो छे किस्यो । डरप्यो मनमा तेह ॥४॥ जोवू तो सही में तीनने । इम कही चाल्यो साथ ॥ प्रामके मांही आवियो । मदन देख हर्षात ॥५॥ ॥
ढाल ५ मी ॥ चौपाइ ॥ यक्ष ले अंगज आवतो जोह । मदन हर्षित हृदय होइ ॥ देखी में साहस अंगज केरो । जोड मिल्या नो हर्ष घणेरो ॥१॥ तत्क्षण सभि चल आया ।
म्या मदनके पाया ॥ मदन यक्षने नमन कीनो । चिरंजीवो आशिर्वाद में दीनो ॥२॥ प्रेमधरी कर साह्यो दूजो । पछे बातांनी कांद बूजो ॥ मदनजी तो बुद्धि
का दरिया । बातांमें यक्षका मन हरिया ॥ ३ ॥ उच्चस्थाने यक्ष बैठाइ । दोनों ढिंग| रही मशले पाइ ॥ कहे मदन लेहरमें आइ । मामाजी की सूरत सुहाइ ॥४॥ देव हुई। इसो रूप षणावे । आश्चर्य मुज मन येही आवे ।। देव कहे भाइ किसी कहूं कहानी। जे हुई छ हकीगत म्हानी ॥५॥षाश्चर्य मुज मन ए भारी । तुम डरिया नहीं देख लगारी ॥ केइ जीव धस्काइ मरिया । इण रूपे उजड गाम करिया ॥ ६ ॥ मदन कहे -
जोगीके ताइ । भूतलमें डर एकही नाइ ॥ मृत्युनें जोगीराज हरावे । तो कहो डर किसका र मन लावे ॥ ७ ॥ हमारे गुरु करामाती भारी । हम डर सब दिया विडारी ॥
ऐसे महापुरुष भाग्य जोग पावे । धन्य भाग जिनके घर आवे ॥ ८॥ अमर कहे किहां