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खण्ड ४
१ देवेगा सुख
॥ छोडाइ साला भणी । खुशी कीधी हो पोतानी नार ॥ पुण्य ॥ १८॥ मदन तदा प्रणमी कहे । गुरु राया हो सह आप उपकार ॥ हम दोइना जी तब तणा । श्वामी आपज हो एक छो दातार ॥ पुण्य ॥ १९॥ आप पुण्य प्रताप थी। श्वामी पग २ हो वरते आणंद ॥ आगे इछित पूरजो । सदा रह जो हो आप चरण सम्बन्द ॥ पुण्य ॥ २०॥ इम बातां विनोद में । गुजारे हो सुख २ काल ॥ अमोल सज्जन मिलापनी ॥ चौ खन्डे हो कही पंचमी ढाल ॥ पुण्य ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ हिवे विद्या साधन | भणी । साधक थइया दोय ॥ बुद्ध बल गुण गौरव लखी । जोगी मन खुश होय ॥१॥ परीक्षा बहुविध करी । सहमें पडिया पार ॥ तब तो मंत्र पढाविया । विधी युक्ता धर प्यार ॥२॥ पक्का साधक तस किया । हटे नहीं को ठाय ॥ करामात जोवा तणी।। दोन्यारे मन चाय ॥ ३ ॥ कृष्ण चतुर्दशी सोम दिन । सहू सामग्री सज्ज ॥ आया तिहार | स्मशाणमें । विद्या साधन कन्ज ॥ ४ ॥ जिम २ जोगी दाखवे । तिम २ करे सहकाम
॥ प्रमाद भय चिंता तजी। काम सिद्धकी हाम ॥५॥ ॥ ढाल ६ ठी॥ श्री सीमंदर | श्वाम शासण श्वामीरे ॥ यय ॥ चूलो मोटो खोदाय । कढाइ चढाइरे ॥ तेल पूरी तत्काल । आंच लगाइरे ॥१॥ जोगी मदनने केय । उतावल कीजेरे ॥ कोइ लावो | संब तुम ढूंढ । जे थी काज सीजेरे ॥ २॥ कहे अंगज ते वार । हूं लेइ आबूरे ॥ मुरदो
HOMSANSKRRISMANSHAKRA
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१ मुरदा