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| वीती बात ॥ इण में जो खोटी हुवें । तो साक्षी साक्षात ॥ १ ॥ हूं मागूं छू एटलो । जे इण कीधो कोल ॥ धूतीमें दूती भणी । प्रगट हुई सहू पोल ॥ २ ॥ दूजाको धन लेवता । जिम ए पाइ सुख ॥ तिमही इणारो धन लियां । हर्षासी मुज मुख ॥ ३ ॥ घणा जीव संतापतां । इण नहीं कियो विचार ॥ तो कहो दुःखियो कुण हुवे ॥ जोइ इने निराधार ॥ ४ ॥ सहूको बदलो मैं इ । इण ने करूं सहू पेर ॥ तो सुख पावे आत्मा । ले धन जावुं । | घेर ॥ ५ ॥ ॥ ढाल १२ मी ॥ कमलदललोचना । यह || बुद्धिवंत मदन जी । एतो न्याय कियो इण पेर | | आं ॥ गंभीर वदने कहे मदन जी । करो भूदेव अब मेहर ॥ बुद्धि || १ ॥ बात साची सहूछे जी तुमारी । ए कुटिला जग जेहर ॥ बु ॥ २ ॥ सह लोक तब कहे मदन से | करीने ऊंची ढेर | बु ॥ ३ ॥ ए कुटिला नहीं दयाने जोगी । धन्य २ विप्र बुद्ध घेर ॥ बु ॥ ४ ॥ इण विना और कोइ न जीत्यो । इण पापणी की लेर ॥ बु ॥ ५ ॥ हमतो जाणता जादू टोणा । कोहू देवता करे खेर ॥ बु ॥ ६ ॥ हिवे एहनी कुंदी करो पूरी। फिर न करे इण| पेर ॥ बु ॥ ७ ॥ वैश्या घबराइ कहे नरमाइ । अब नहीं रमू जूवा जेर ॥ बु ॥ ८ ॥ गुणी कात सह सहायक होवे । महारो तुम करो खेर || बु ॥ ९ ॥ मदन कहे तुम मत घबरावो || प्रभुजी करसी हर ॥ बु ॥ १० ॥ कहे विप्रसे बात सुणो मुज । संतोषे लेवो मन फेर ॥
॥ ११ ॥ मूर्खने संग मूर्खना बनो । लावो ज्ञानकी लेहर ॥ बु ॥ १२ ॥ तुम छो ब्राह्मण