________________
१ मेरी
वसंत रमण गया बाग । हार आपको रांड जोइ ॥ भरमाइ मुज कहे । लाइदो हार मुजे सोह | मोह अन्ध मानी बात । आपके मेहले आयाइ ॥ न जागूं चोरी कर्म । रांड मुज फंदे न्हाख्योइ ॥ कही मैं साची बात। जीवित दान दो मुज तांइ ॥ म ॥ १२ ॥ सुणी गुणचन्द चरित्र । दया राणीके मन आइ ॥ बैठायो निज पास फेर दिया आया सिपाइ ॥ गुणचन्दसे कहे राणी । अब कहे तुज जे इच्छाह ॥ जाणो वैश्य । घर के करणी धनकी कमाइ ॥ जो तूं छोड व्यसन विश्वजीवतो राखूं तुज तांइ ॥ म ॥ १३ ॥ गुणचन्द कहे कर जोड । मातजी सुणो इच्छा म्हारी ॥ हूं हूं वाणिक जाता नहीं हुइ थोडी मुज ख्वारी ॥ अब प्रतिज्ञा निश्चल मन थी । मैं लोधी धारी ॥ नहीं जोवूं तस मुख | कोड उपाय कोइ वारी ॥ इम सुणी राणी वयणा पुत्र परपासे राख्याइ ॥ म ॥ १४ ॥ एकदिन देखी उदास । रांणीने गुणचन्द बतलावे ॥ कहे राणी मुज प्यारी । पुत्री गमगइ नहीं पावे ॥ गुणचन्द कहे हूं पतो लगास्यूं । राणी हर्षाये ॥ बाइ नाम पूछयाथी । ते गुणसुन्दरी दरसावे ॥ ते दे मुज मिलाय । उपकार भूलूंगा नहीं भाइ ॥ म ॥ १५ ॥ सुख रहे गुणचन्दा राणी पासे हित चहाइ खान पान वस्त्र भूषण तस राणी दीधाइ ॥ सुणी वैश्या की रीत । प्रीति कोइ सुगणा मत कीजो ॥ कहे विप्र महाराज बात और आगे सुण लीजो || ढाल चतुर्थे खन्ड एकादश अमोल ऋषि गाइ ॥ मत ॥ १६ ॥ दोहा ॥