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म.श्रे.
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बोलाइ मुनीमने | राणी ओलंभो देव || संभाल्या नहीं कुँवरने । मरजाताथा एय ॥ १ ॥ मुनीम कहे । करजोडी नहीं माजी मुज दोष || वार्या घणा मान्यो नहीं । करी रह्यो । | अपशोष ॥ २ ॥ कहे राणी जावो तुमे । चंपाए सेठने पास || मिलाइ परिवारने । पूरो सहनी आस ३ ॥ विदागिरी मांहे दियो । राणी कंठको हार ॥ सागर लग पहोंचावियो । देइ सुभट लार ॥ ४ ॥ वाहनारूढ घर पहोंचिया ॥ वीतक कियो प्रकाश ॥ उपकार मान्यो राणीको । सज्जन हुयो हुल्लास ॥ ५ ॥ ॥ ढाल १२ मी ॥ रंगीला सूडा | यह ॥ विप्र मदनसे करे उच्चारो । गुणचन्द्र छे मंत्री महारो । एकांते मिल्यो ते वारो हो ॥ मदनजी सुणिये ॥ १ ॥ मैं पूछयो कमावा सिधाया । पण कंगाल होइ किम आया | तब गुणचंद घणा शरमाया हो | म ॥ २ ॥ वीतक हाल दरसायो । सुणी मुजने क्रोध भरायो । मर्म वैश्यानो पाया हो | म ॥ ३ ॥ तब मैं कह्यो सुण भाइ । हिवे हूं जास्यूं तिण ठाइ । गमावुं वैश्यानी गुमराइ हो ॥ म ॥ ४ ॥ थारो धन पाछो लावू । तो मैं ब्राह्मण कहलावुं । नहीं तो पाछो नहीं आधुं हो | म ॥ ५ ॥ गुण सुन्दरी नो पत्तो | लगास्युं । श्रीपुर राय राणीने मिलास्युं । एता कारज कर घर आस्युं हो ॥ म ॥ ६ ॥ गुणचंन्द मुज समजाह । ते वैश्यासे नहीं जीताई ॥ बडा भूपत तिण हार्या हो ॥ म ॥ ७ ॥ तिणरो बचन अपमानी । आयो निज घर मावित्र
खण्ड ४
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