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१चन्द्रजैसी
बहु । रहे जो लगाइ ॥ यह अनंगी नार । यार ले सेहल करण जाइ ॥ म॥ १॥ राजा || राणी दासी सहेली । संग सब सज आया ॥ यथायोग्य सजन संघ रम्मत । गम्मत | लगाया ॥ राणी कंठे हार। हीरा तारांगण शोभाया ॥ नाचत कूदत भलक पडे । जाणे | इन्दू छाया ॥ दृष्टि पडी गणिकाकी उसपे । मन गयो ललचाह ॥ म॥ २ ॥ जो मिले | ऐसा हार । जिया सफल मेरा थावे | इस विना सिणगार अलूणा । मुजको लखावें ॥ किम आवे यह हात । बात विषमी बहु देखावे ॥ राजा तणी ए प्यारी र । दर्शन दुष्करसे पावे ॥ हुई चित उदास । गई तब सुरती विलखाइ । म ॥ ३॥ | बंद किया रंग राग । देख इम साती सहू पूंछे । किम हुये उदास । कहो तुम मनमाये | स्यूं छे । ते कहे पूरण हार । यार इच्छाका है कोई ॥ कहूं उसमें बात । पार कर दे |
चहाइ मोई ॥ न तजू जीवित जान । राख स्यूं कंत उम्भर तांई ॥ म ॥ ४ ॥ सुणी * प्यारीकी बात । गुणचन्द तत्क्षण ढिंग आइ ॥ कहो होवे जो मनसा । तत्क्षण | पूरूं क्षणमांइ ॥ मरणांतिक नहीं डरूं । करूं दुष्कर हूं उपाइ ॥ तुम मन चावे सोहूं करस्यं । दंकहो सो लाइ॥इम सण गणिका हर्षा कहे तुम सब प्यारा नाहिं।म॥ ५॥ देखायो ते हार भूलकतो । राणी कंठे सारो। लादो करी उपाय राखूगा ।प्राणसे कर प्यारो ॥ नहीं देवू कभी छेह । बचन लो पहलां तुम म्हारो ॥ करो इच्छा पूरण ,
२ मेरी