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खंड
* वै ॥ १७ ॥ क्षमिए मुज अपराधने । थइ नशे वे भान हो ॥ गुन्हो कियोंमे मोटको । म. श्रे. अ कियो प्यारा अपमान हो ॥ वै ॥ १८ ॥ भोला भाइ समज्या नहीं ॥ पुन्हः पडया तस ॐ फंद हो ॥ विसरिया ते दुःखने । कामी नर महा अन्ध हो. ॥ वै ॥ १९॥ मुनीम जाणी
बात ए । रह्या मनमें पस्ताय हो ॥ धन्न गयो इज्जत गई। चाले नहीं उपाय हो ॥ वै॥d - २० ॥ जो दुर्व्यश्नीनीरीतडी । सुज्ञ तजो सुख चाय हो ॥ दशमी ढाल अमोलन ।
वैस्या व्यश्नीनी गाय हो ॥ वै ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ गुणचन्द लुब्ध्यो नारसे । जुवापे अतिमन ॥ थोडा दिनरे मायने । खोयो सघलो धन ॥१॥ मतलय पूग्यो रांडनो। पूर्व परे करे तेह ॥ धक्का मुक्का मारने । छोडायो निज गेह ॥ २॥ कर जोडी गुणचंद कहे खास्यु थारी ऐंठ ॥ दर्शन ले तृप्त तो था । रहूं दरबजे बैठ ॥ ३ ॥ पडयो रहे घर बाहिरे
जे न्हाखे ते खाय ॥ प्रसन्न मुख जो नारनो । आप घणो हर्षाय ॥ ४ ॥ तो पण नही गमे रांडने। मारण चिंते उपाय । कुबुद्ध करे जे आगलै । ते सुणजो
चितलाय ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ११ मी ॥ मत करना परतीत रांडकी ॥ यह ॥ लावणीमें | Fमत करो वैश्या संग मानलो मेरी सीख भाइ ॥ दगादार या नार थइना किसकी अब
थाइ ॥ ७ ॥ वसंतऋतु दरम्यान । फूली है सबही बनराइ ॥ कंदर्प केरी वहार लूटने लोक घणा धाइ ॥ आये वागके मांय । खेलते खातें मिठाइ ॥ नाच रंग विनोद ख्याल