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म.श्रे. ६९
मैं
भराया ॥ संग ॥ ३ ॥ तब सेवक कहे सुणो श्वामी । ए सेठ सुदौदन नामी । तस घर कछू नहीं खामी । वैपार काज विदेश सिधाया । लाभ उपराजी आज आया ॥ संग ॥ ४ ॥ सहू सज्जन ये तसथावे । बधाइ घर ले जावे । कमावुं सहू मन भावे । सुणी इम दास तणी वाणी । कुमरके मनमें भेदाणी ॥ संग ॥ ५ ॥ हूं तो कमाइ नहीं जाणूं । खां छू ठंन्डो खाणूं । किम मावित्रने मन मानूं । अब तो विदेशे जाइ ॥ लावू धन घणो कमाइ ॥ संग ॥ ६ ॥ इम भाग परीक्षा थाइ । सज्जन मुज लासी बधाइ । सहू लोक मने सरसाइ । इम करी पुक्त विचारो ॥ मावित्र कने आया तत्कालो ॥ संग ॥ ७ ॥ आतुर कुँवरने जोइ । सेठ आश्चर्य मन अति होइ ॥ मिष्ट वयणे पूछे सोह । कुँवर कहे अर्जी सुण लीजे ॥ इच्छा म्हारी पूर्ण कीजे ॥ संग ॥ ८ ॥ मैं विदेश कमावा जावूं । पूंजीने द्रव्य कुछ चावूं । दूंगाजे कमाइ लाबूं ॥ उमंग उपजी ये मुज मनमें । लेखूंगा यशः सह जनमें ॥ संग ॥ ९ ॥ पिता कहे सुण मेरी भाइ । अपने घर कमी कुछ नाहीं । खरचो विलसो जे चित चाइ ॥ कारण कमावाका नहीं कांइ । जाण के दुःखी न होणाइ ॥ संग ॥ १० ॥ इम बहु परे समजावे । पण कुँवर मन नहीं भावे । जावण को हट लगावे ॥ करण मन प्रसन्न तब पतो ॥ दियो घणो धन और सूतो ॥ संग ॥ ११ ॥ वली ग्राम दंडेरो पिटायो । गुण चन्द विदेशे जायो । तस संगे जे नर
खण्ड ४