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नींद न आइजी ॥ अर्ध निशामें म्हारी नारी । उठीने किहां जाइजी ॥ म ॥१६॥ #मैं पण गुप्त पणे हुयो लारे । एकना घर माहे पेठो जी ॥ तरुण पुरुष मुज नारी संगाते । व क्रीडा करतो दीठोजी ॥ म ॥ १७ ॥ जार कहे खोटो प्रेम है थारो । तूं अब सासरे प्रजासी जी ॥ थारे वियोगि प्यारी मारो । अकाले मृत्यू थाजी ॥ म ॥ १८ ॥ नारी
कहे प्यारा इण भव माही । छोडूं नही तुज साथो जी॥ते मौल्यो मुज गिणती में नाही। तुमही छो मुज मथो जी ॥ म ॥ १९ ॥ सदातो वेगो मरतो (जातो) घरकानी । अबके हट घणी लीधोजी ॥ देखू जावे नहीं तो उपावे । पर भद पूगा स्यूं सीधो जी।
म ॥ २० ॥ इम सुणी जार अतिहर्षाया । काम क्रीडा करवा लाग्या जी ।। सुणी बात & अजोग कर्तव्य जो । म्हारो क्रोधानल जाग्या जी ॥ म ॥ २१ ॥ ललकार्यों में रे दुष्ट अन्याइ । आज लरयो तूं हाथेरे ॥ इत्तादिन मुज घणो सतायो । लुब्धी नार मुज सायो । जी॥म ॥ २२ ॥ ते दुष्ट म्हारे सामे थइयो । करवा लाग्यो लडाइ जी ॥ हाक हमारी मणने तिहां तब । लोक घणा आया धाइ जी॥ म ॥ २३ ॥ राज सुभट पण दौडी आया। पूछी हकीगत सारो जी ॥ जाण अन्याह कब्ज कियो झट । पकडी लेगया जारोजी
म ॥ २४ ॥ नारी शरमाइ घर गइ भागी। ए थाइ दूजी ढालोनी ॥ ऋषी अमोलख कहे अब आगे । नारी चरित्र निहांलो जी ॥ म ॥ २५ ॥ ॥ दोहा प्राप्त समय ते