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२ मोटो
१३ खाटाहो
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सुभटने नहीं मन भावे | धूम मचावे | हीण वचन रह्या बकी जी ॥ ३ ॥ तब जोगी घोटो उठायो । रोशे सुभटने बतायो । सह मुरछायो। धरणीको सरणो लियो जी ॥ लोक सह आश्चर्य पाइ । जीव लेइ न्हाठा जाइ । हा कार धाइ । कोइ राजाने जा कियो जी ॥ ४ ॥ सविने नृप पठाया । बजारमें दौडी आया । जो तिण ठाया । भेद नगर जनथी लयोजी || राय आगल जाइ कह्यों । जोगी कोप थी इम भयो । आश्चर्य थयो । जोगी शांत करो नृप कयो जी ॥ ५ ॥ सचिव सामंत साथ लेह । जोगीने आपणमेह | कर जोड के । इच्छित हुकम फरमावियो जी । सहू समोह भेगो भयो । तत्क्षण तिहां देखी रह्यो । मदन कह्यो । अहो सुणो न्यावसी फीवियो जी ॥ ६ ॥ न्याय आसणे विराजी । किस्या न्याय कीनो गाजी । कहो ते मांजी । मरण मुखे इने क्यों दियोजी ॥ राजा ईश्वर सारखा । करे बुद्धि थी पारखा । जे हाँरीखा । फिर शिक्षा देवो कियो जी ॥ ७ ॥ पूछ तल्लास कीनी नांहीं । नाक खन्ड नहीं को लाइ । किहां पब्याह | रक्त चिन्ह बली जोइये जी ॥ शस्त्र वली ते मंगावो । वक्त वार वली पूछावो । इम हुवे | न्यावो । उतावला नहीं होइ ए जी ॥ ८ ॥ सचिव कहे साची कही । भूल्यो हूं शुद्धना रही । चालो सही । राय भवनरे मांयने जी । मान बात साधे थया । जोगी मदन आगल भया । सभा में गया । लोक घणा जुड्या आयने जी ॥ ९ ॥ क्षेमा सहा बोलविया ।
| १ क्या अच्छा
लगा